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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

मोहनदेव-धर्मपाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :187
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9809
आईएसबीएन :9781613015797

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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)

गोदान- कथावस्तु - होरी नामक मध्यम श्रेणी के किसान की बड़ी इच्छा थी कि उसके घर पर एक गाय हो। भोला नामक एक दूसरे किसान ने, जिसकी स्त्री मर चुकी थी, होरी को गाय देने का वचन दिया और बदले में होरी ने उसका विवाह करवा देने के लिए कहा। होरी प्राय: अपने जमींदार रायसाहब के यहाँ जाया करता। इस पर उसका बड़ा लड़का गोबर प्राय: नाराज रहता। इधर भोला ने होरी को गाय उधार दे दी। एक दिन उसके भाई हीरा ने ईर्ष्यावश गाय को जहर दे दिया। होरी ने उसे देख भी लिया था। फिर भी वह बात को पी गया। पर धनिया ने भेद खोल दिया। इस पर पुलिस के दारोगा ने जब हीरा के घर की तलाशी लेने को कहा तो होरी ने भाई की लाज को अपनी लाज समझ कर रिश्वत देकर मामला ठंडा करने के विचार से तीस रुपये उधार लिये, पर धनिया ने रुपये नहीं देने दिये। इधर हीरा सायब हो गया तो होरी ने रात-भर काम करके हीरा के खेत में धान रोपे। गोबर जब भोला के घर गाय लेने गया था तो उसकी लड़की झुनिया से उसका प्रेम हो गया था। कुछ दिनों बाद गर्भवती होकर वह होरी के यहाँ आ गई। पहले तो होरी और धनिया उस पर क्रुद्ध हुए और बाद में दया करके उसे आश्रय दे दिया। गोबर इस समय तक कहीं लापता हो चुका था। झुनिया को अपने घर में रखने के अपराध के कारण पंचों ने होरी से सौ रुपये का धान (गल्ला) ले लिया। गाँव के जमींदार रायसाहब ने वे रुपये पंचों से ले लिये। बिजली पत्र के सम्पादक द्वारा सारा भेद खोलने की धमकी देने पर रायसाहब ने पन्द्रह सौ रुपया देकर उससे पीछा छुड़ाया। गोबर शहर में दही-बड़े का खोंचा लगाकर कुछ पैसे कमाने लगा तो झुनिया को अपने साथ ले आया। पर जब वह वापिस लौटकर आया उसकी जगह दूसरा खोंचे वाला बैठने लग पड़ा। अत: उसे एक शक्कर के मिल में नौकरी करनी पड़ी। मिल में मजदूरों को हटाये जाने पर झगड़ा हो गया जिसमें गोबर के सख्त चोट आई। मिल को आग लगा दी गई और मैनेजिंग डाइरेक्टर मिस्टर खन्ना कुछ पागल-से हो गये।

उधर रायसाहब कौंसिल के चुनाव में अपने प्रतिद्वन्द्वी राजा सूर्यपाल सिंह को हराकर जीत गये। इधर गाँव के मुखिया और साहूकार पंडित दातादीन के पुत्र मातादीन ने एक सिलिया नामक चमारिन को, जो उसके खेत पर मजूदूरी किया करती थी, अपने घर में रख लिया। इसलिए एक दिन चमारों ने मातादीन को पकड़ कर उसके मुँह में एक हड्‌डी-सी ठूंस दी। इस पर मातादीन ने सिलिया को निकाल दिया। उसे होरी ने दया करके अपने यहाँ आश्रय दे दिया।

बूढ़े भोला ने एक जवान स्त्री से शादी कर होरी के गाँव में रहना आरम्भ कर दिया। उस जवान स्त्री को नोखेराम ने अपने यहाँ रख लिया। गाँव में जब इसकी खूब चर्चा होने लगी तो भोले की स्त्री ने होरी को उसकी लड़की सोना के विवाह में दो सौ रुपये देने का वायदा किया। अत: वह उसकी हाँ-में-हाँ मिलाने लग पड़ा। होरी के घर पर ही सिलिया के एक लड़का हुआ। प्रायश्चित्त कर देने पर भी जब जात वालों ने मातादीन को अपने साथ नहीं रखा तो उसने सिलिया को पास ही रख लिया। कुछ दिनों बाद जब उसका लड़का मर गया तो वह अकेला ही उसे श्मशान ले गया। करजदार होने के कारण होरी ने अपनी लड़की रूपा का विवाह रामसेवक नामक एक अधेड़ आयुवाले खाते-पीते किसान से कर दिया। इसके लिए उसे जन्म-भर पश्चात्ताप रहा।

हीरा बहुत दिनों के बाद अपने घर लौट आया। बीच में वह पागल हो गया था और कई पागलखानों में रह चुका था। उसे वह मरी हुई गाय सदा दिखाई देती रहती थी। घर आने पर दोनों भाई बड़े प्रेम से मिले। अंत में होरी लू लगने से चल बसा। गोदान करने की उसकी इच्छा मन-ही-मन में रह गई। धनिया ने उसी दिन सुतली बेचकर बीस आने के पैसे पाये थे। उन्हीं को पति के ठंडे हाथों में देकर मातादीन से बोली-''महाराज, न घर में गाय है और न बछिया ही। यही पैसे हैं यही इनका गोदान है,'' कहकर वह बेहोश होकर गिर पड़ी।

आलोचना - गोदान प्रेमचंद की यथार्थवादी उत्कृष्ट रचना है। अन्य उपन्यासों के समान वे इसमें आडम्बरपूर्ण आदर्श के चक्कर में नहीं पड़े। उन्होंने इसका नायक एक साधारण किसान को बनाया है जो न कोई वीर है न शहीद, फिर भी उसके संग्राम बड़े महत्वपूर्ण हैं। समाज के जितने अधिक और जैसे सजीव चित्र गोदान में अङ्कित हुए है वैसे हिंदी क्या, किसी भाषा के उपन्यास में नहीं हो पाये। इन्हीं सब बातों को देखते हुए आलोचकों ने कहा है कि गोदान न केवल हिंदी-साहित्य में प्रत्युत विश्व-साहित्य में अपना विशेष स्थान रखता है।

प्रेमचंद जी वस्तुत: हिंदी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासकार और कहानी- लेखक के पद पर ही प्रतिष्ठित रहेंगे। उनकी रचनाएँ संसार के बड़े-से-बड़े लेखक की रचनाओं के समक्ष उन्नीस नहीं ठहरतीं। यह बात तो दूसरी है कि हिंदी वालों के आलस्य के कारण प्रेमचंद जी के साहित्य का विश्व में तो क्या, अभी भारत में भी प्रचार नहीं हो पाया। एक समय आयेगा जबकि प्रेमचंद जी की रचनाओं का विश्व की भाषाओं में अनुवाद हो जायगा, तो प्रेमचंद जी का स्थान अवश्य ही विश्व की प्रमुख प्रतिभाओं में होगा, इसमें कुछ संदेह नहीं।

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"हिंदी साहित्य का दिग्दर्शन" समय की आवश्यकताओं के आलोक में निर्मित पुस्तक है जोकि प्रवाहमयी भाषा का साथ पाकर बोधगम्य बन गयी है। संवत साथ ईस्वी सन का भी उल्लेख होता तो विद्यार्थियों को अधिक सहूलियत होती।