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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

मोहनदेव-धर्मपाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :187
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9809
आईएसबीएन :9781613015797

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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)

सुमित्रानन्दन पन्त

प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण अल्मोड़ा प्रान्त के कौसानी नामक एक ग्राम में सं० १९५७ में आपका जन्म हुआ। इसी कौसानी नामक कस्बे की श्यामल छाया में पन्तजी का बाल्यकाल व्यतीत हुआ था। आपके पिता पं० गंगादत्त पन्त जमींदार थे, और कौसानी राज्य में कोषाध्यक्ष का काम करते थे। पन्तजी की माता का नाम सरस्वती देवी था। चार भाइयों में सबसे छोटे आप हैं।

पन्तजी की प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव की पाठशाला में हुई। यहाँ लगभग ४-५ वर्ष शिक्षा ग्रहण कर आप अल्मोड़ा के गवर्नमेंट हाईस्कूल में प्रविष्ट हो गये। इस स्कूल में नवीं कक्षा तक पढ़कर आप काशी चले गये। संवत् १९७४ में यही पर जयनारायण हाईस्कूल से आपने मैट्रिक परीक्षा पास की।

संवत् १९७६ में आप काशी से प्रयाग आये और म्योर-सेंट्रल-कालेज में प्रविष्ट हुए। यहीं से आपकी काव्य-प्रतिभा ने उड़ानें भरनी आरम्भ कीं। प्रारम्भ से ही इनकी कविता मनोहारिणी थी, जिससे प्रभावित होकर उस समय के विख्यात लेखक तथा काव्यमर्मज्ञ पं० शिवाधार पाण्डेय ने आपकी प्रतिभा को विकसित करने के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन दिया। पाण्डेयजी की प्रेरणा से आपने अंग्रेजी और संस्कृत-साहित्य का गम्भोर अध्ययन एवं मनन किया। कालेज में प्रविष्ट होने के तीन महीने बाद ही

असहयोग आंदोलन के कारण आप कालेज छोड़कर घर चले गये और वहीं पर स्वतन्त्र रूप से गम्भीर अध्ययन में जुट गये। आपने 'रूपाभ' नामक मासिक पत्र का संपादन तथा मद्रास में रहकर विश्व-विख्यात नर्तक उदयशंकर के चल-चित्र 'कल्पना' के निर्माण में भी सहयोग दिया। योगिराज अरविन्द के आश्रम में रहकर उनके राजयोग का सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक ज्ञान एवं अनुभव प्राप्त कर आपने अपने-आपको बहुत उच्च आध्यात्मिक धरातल पर पहुँचा दिया है। आजकल आपने 'लोकायतन' नामक संस्थान के द्वारा महान् सांस्कृतिक अनुष्ठान आरम्भ कर रखे है। साथ ही अखिल भारतीय आकाशवाणी के हिन्दी साहित्यिक कार्यक्रम भी आपके निर्देशन में भली भाँति चल रहे हैं।

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UbaTaeCJ UbaTaeCJ

"हिंदी साहित्य का दिग्दर्शन" समय की आवश्यकताओं के आलोक में निर्मित पुस्तक है जोकि प्रवाहमयी भाषा का साथ पाकर बोधगम्य बन गयी है। संवत साथ ईस्वी सन का भी उल्लेख होता तो विद्यार्थियों को अधिक सहूलियत होती।