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भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शनमोहनदेव-धर्मपाल
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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)
कबीर का रहस्यवाद- अद्वैत अर्थात् आत्मा-परमात्मा की एकरूपता की भावना जब साहित्य में आती है तो उसे रहस्यवाद कहते हैं। कबीर ने अपनी रचनाओं में उपनिषदों तथा वेदान्त-दर्शन के अद्वैतभाव का सर्वप्रथम प्रतिपादन किया है। अत: संत कबीर हिन्दी के प्रथम रहस्य-वादी कवि थे। जैसे कि-
लाली मेरे लाल की, जित देखूँ तित लाल।
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल।।
आदि उनके रहस्यवाद सम्बन्धी पद अत्यन्त प्रसिद्ध हैं।
कबीर की रचनाएं- कबीर का मुख्य ग्रन्थ 'बीजक' नाम से प्रसिद्ध: है। वास्तव में यह कबीर के पदों का बृहत् संकलन है।
(१) साखी-- दोहे (२) सबद - पद (३) रमैनी - चतुष्पदी
कबीर की रचनाएँ इन तीन रूपों में प्राप्त है। इसके अतिरिक्त भी 'अनुराग-सागर', 'शब्दावली' आदि इनके संग्रह-ग्रंथ कहे जाते है। पर इनमें से प्रामाणिक 'बीजक' और उससे भी अधिक प्रामाणिक सिक्खों के 'श्रीगुरु-ग्रन्थसाहब' में संगृहीत पद ही माने जाते हैं।
कबीर की भाषा- कबीर ने स्वयं अपनी भाषा को पूर्वी कहा है। पर वास्तव में वह केवल पूर्वी ही नहीं है उसमें खड़ीबोली, ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी, पश्चिमी, अवधी आदि अनेक भाषाओं का मिश्रण हुआ है। जैसे कि-
चली है कुलबोरनी गंगा नहाय।
सतुआ बराइन बहुरि जाइन, घूँघट ओटे मसकत जाय।
गठरी बांधिनि मोठरी बांधिनि, खसम के मूँडे दिहिन धराय।।
यहाँ पर बाँधिनि, दिहिन आदि क्रियाएँ पूर्वी अवधी की है। केरा, केरी आदि कारक विभक्तियाँ अवधी की हैं।
'चन्दन होसी बावना नीम न कहसी कोय' में राजस्थानी की झलक है।
'करम गति टारे नाँहि टरै' आदि पदों में अवधी भाषा झलक रही है। इसी प्रकार पंजाबी और खड़ीबोली के रूप भी स्थान-स्थान पर मिलते हैं। इसीलिए कबीर की भाषा को खिचड़ी या सधुक्कड़ी भाषा भी कहते हैं।
इस प्रकार संक्षेप में कह सकते हैं कि-
(१) कबीर का जन्म सं० १४५५ में मगहर में और मृत्यु सं० १५७५ में वहीं पर हुई।
(२) वे नीरू और नीमा के सगे बेटे थे, पालित पुत्र नहीं।
(३) निरक्षर होते हुए भी वे दिव्य प्रतिभासम्पन्न महापुरुष और महाकवि थे।
(४) दलित निम्नवर्ग का उत्थान, हिन्दू-मुस्लिम-ऐक्य और भारतीयता का प्रचार ही उनके जीवन और साहित्य का ध्येय था।
(५) बीजक तथा गुरु-ग्रन्थ साहब नामक संग्रह में संगृहीत उनकी रचनाओं की भाषा मिली-जुली या खिचड़ी है। ये रचनाएँ साखी, सबद व रमैनी नामक तीन रूपों में उपलब्ध हैं।
(६) कबीर हिन्दी में रहस्यवाद के प्रथम कवि थे।
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