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प्रेमचन्द की कहानियाँ 41

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9802
आईएसबीएन :9781613015391

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इकतालीसवाँ भाग


यहीं बातें हो रही थीं कि यकायक कोठे पर दो आदमी दिखलाई पड़े। दोनों शिकारी वृक्ष की ओट में छिप गए। संन्यासी ने कहा- शायद सूबेदार साहब कोई मामला तय कर रहे हैं।

ऊपर से आवाज आयी- तुमने एक विधवा स्त्री की जायदाद ले ली है; मैं इसे भली-भाँति जानता हूँ। यह कोई छोटा मामला नहीं है। इसमें एक सहस्र से कम पर मैं बातचीत करना नहीं चाहता।

राजकुमार में इससे अधिक सुनने की शक्ति न रही। क्रोध के मारे नेत्र लाल हो गए। यही जी चाहता था कि इस निर्दयी का अभी वध कर दूँ। किन्तु संन्यासीजी ने रोका। बोले- आज इस शिकार का समय नहीं है। यदि आप ढूँढ़ेंगे तो ऐसे शिकार बहुत मिलेंगे। मैंने इनके कुछ ठिकाने बतला दिये हैं। अब प्रातःकाल होने में अधिक विलम्ब नहीं है। कुटी यहाँ से अभी दस मील दूर होगी। आइए, शीघ्र चलें।

दोनों शिकारी तीन बजते-बजते फिर कुटी में लौट आये। उस समय बड़ी सुहावनी रात थी, शीतल समीर ने हिला-हिलाकर वृक्षों और पत्तों की निद्रा भंग करना आरम्भ कर दिया था।

आध घंटे में राजकुमार तैयार हो गए। संन्यासी में अपनी विश्वास और कृतज्ञता प्रकट करते हुए उनके चरणों पर अपना मस्तक नवाया और घोड़े पर सवार हो गए।

संन्यासी ने उनकी पीठ पर कृपापूर्वक हाथ फेरा। आशीर्वाद देकर बोले- राजकुमार, तुमसे भेंट होने से मेरा चित्त बहुत प्रसन्न हुआ। परमात्मा ने तुम्हें अपनी सृष्टि पर राज करने के हेतु जन्म दिया है। तुम्हारा धर्म है कि सदा प्रजापालक बनो। तुम्हें पशुओं का वध करना उचित नहीं। दीन पशुओं के वध करने में कोई बहादुरी नहीं, कोई साहस नहीं; सच्चा साहस और सच्ची बहादुरी दीनों की रक्षा और उनकी सहायता करने में है; विश्वास मानो, जो मनुष्य केवल चित्तविनोदार्थ जीवहिंसा करता है, वह निर्दयी घातक से भी कठोर-हृदय है। वह घातक के लिए जीविका है, किन्तु शिकारी के लिए केवल दिल बहलाने का एक सामान। तुम्हारे लिए ऐसे शिकारों की आवश्यकता है, जिसमें तुम्हारी प्रजा को सुख पहुँचे। निःशब्द पशुओं का वध न करके तुमको उन हिंसकों के पीछे दौड़ना चाहिए, जो धोखा-धड़ी से दूसरे का वध करते हैं। ऐसे आखेट करो, जिससे तुम्हारी आत्मा को शान्ति मिले। तुम्हारी कीर्ति संसार में फैले। तुम्हारा काम वध करना नहीं, जीवित रखना है। यदि वध करो, तो केवल जीवित रखने के लिए। यही तुम्हारा धर्म है। जाओ, परमात्मा तुम्हारा कल्याण करें।

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4. शुद्धि 

आखिर जो होना था, वही हुआ। लाला प्रेमनाथ को अपना सब-कुछ खो चुकने के बाद आखिरकार मालूम हुआ कि बाज़ारे-हुस्न में वफ़ा दुष्प्राप्य है। अभी बहुत दिन नहीं गुज़रे वह मित्रों में उदारताहीन संयमी मशहूर थे; मगर एक दिन दोस्तों के इसरार से एक महफ़िल में शरीक हुए और बी हुस्ना के हुस्ने-ज़ाहिद-फ़रेब (संयमी को फँसाने वाला सौंदर्य) ने वहीं जन-समूह में उनका दिल लूट लिया। रंगीन-मिजाज़ों के लिए हुस्न और अदा दिल बहलाव का काम है, जाहिदों के लिए पैग़ामे-शहादत।

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