कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 41 प्रेमचन्द की कहानियाँ 41प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इकतालीसवाँ भाग
ऐसी अवस्था में कोई एक घंटा चलने के बाद वह एक ऐसे स्थान पर पहुँचे, जहाँ एक ऊँचे टीले पर घने वृक्षों के नीचे आग जलती दिखाई पड़ी। उस समय इन लोगों को मालूम हुआ कि संसार के अतिरिक्त और भी वस्तुएँ हैं।
संन्यासी ने ठहरने का संकेत किया। दोनों एक पेड़ की ओट में खड़े होकर ध्यानपूर्वक देखने लगे। राजकुमार ने बंदूक भर ली। टीले पर एक बड़ा छायादार वट-वृक्ष भी था। उसी के नीचे अंधकार में 10-12 मनुष्य अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित मिर्जई पहने चरस का दम लगा रहे थे। इनमें से प्रायः सभी लम्बे थे। सभी के सीने चौड़े और हृष्ट-पुष्ट। मालूम होता था कि सैनिकों का एक दल विश्राम कर रहा है।
राजकुमार ने पूछा- यह लोग शिकारी है।
संन्यासी ने धीरे से कहा- बड़े शिकारी हैं। ये राह चलते यात्रियों का शिकार करते हैं। ये बड़े भयानक हिंसक पशु हैं। इनके अत्याचारों से गाँव के गाँव बरबाद हो गए और जितनों को इन्होंने मारा है, उनका हिसाब परमात्मा ही जानता है। यदि आपको शिकार करना हो तो इनका शिकार कीजिए। ऐसा शिकार आप बहुत प्रयत्न करने पर भी नहीं पा सकते। यही पशु हैं, जिन पर आपको शस्त्रों का प्रहार करना उचित है। राजाओं और अधिकारियों के शिकार यही हैं। इससे आपका नाम और यश फैलेगा।
राजकुमार के जी में आया कि दो-एक को मार डालें। किन्तु संन्यासी ने रोका और कहा- इन्हें छेड़ना ठीक नहीं। अगर यह कुछ उपद्रव न करें, तो भी बचकर निकल जाएँगे। आगे चलो, सम्भव है कि इससे अच्छे शिकार हाथ आएँ।
तिथि सप्तमी थी। चंद्रमा भी उदय हो आया। इन लोगों ने नदी का किनारा छोड़ दिया था। जंगल भी पीछे रह गया था। सामने एक कच्ची सड़क दिखाई पड़ी और थोड़ी देर में कुछ बस्ती भी देख पड़ने लगी। संन्यासी एक विशाल प्रासाद के सामने आकर रुक गए और बोले- आओ, इस मौलसरी के वृक्ष पर बैठें। परन्तु देखो, बोलना मत; नहीं तो दोनों की जान के लाले पड़ जाएँगे। इसमें एक बड़ा भयानक हिंसक जीव रहता है, जिसने अनगिनत जीवधारियों का वध किया। कदाचित् हम लोग आज इसको संसार से मुक्त कर दें।
राजकुमार बहुत प्रसन्न हुआ और सोचने लगा- चलो, रात-भर की दौड़ तो सफल हुई। दोनों मौलसरी पर चढ़कर बैठ गए। राजकुमार ने अपनी बंदूक सम्भाल ली और शिकार की, जिसे वह तेन्दुआ समझे हुए था, बाट देखने लगा।
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