लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 40

प्रेमचन्द की कहानियाँ 40

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9801
आईएसबीएन :9781613015384

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

420 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चालीसवाँ भाग


मिर्जा सज्जाद अली के घर में कोई बड़ा-बूढा न था, इसलिए उन्हीं के दीवानखाने में बाजियाँ होती थी; मगर यह बात न थी कि मिर्जा के घर के और लोग उसके व्यवहार से खुश हों। घरवाली का तो कहना ही क्या, मुहल्ले वाले, घर के नौकर-चाकर तक नित्य द्वेषपूर्ण टिप्पणियाँ किया करते थे 'बड़ा मनहूस खेल है। घर को तबाह कर देता है। खुदा न करे किसी को इसकी चाट पड़े। आदमी दीन दुनिया किसी के काम का नहीं रहता, न घर का न घाट का। बुरा रोग है यहाँ तक कि मिर्जा की बेगम को इससे इतना द्वेष था कि अवसर खोज-खोज कर पति को लताड़ती थी। पर उन्हें इसका अवसर मुश्किल से मिलता था। वह सोचती रहती थी, तब तक उधर बाजी बिछ जाती था। और रात को जब सो जाती थीं, तब कहीं मिर्जा जी भीतर आते थे। हाँ नौकरों पर वह अपना गुस्सा उतारती रहती थी- 'क्या पान माँगे हैं? कह दो आकर ले जायँ। खाने की भी फुर्सत नही हैं? ले जाकर खाना सिर पटक दो, खायँ चाहे कुत्ते को खिलावें।' पर रूबरु वह कुछ न कह सकती थीं। उनको अपने पति से उतना मलाल न था जितना मीर साहब से। उन्होंने उसका नाम मीर बिगाड़ू रख छोड़ा था। शायद मिर्जा जी अपनी सफाई देने के लिए सारा इल्जाम मीर साहब ही के सिर थोप देते थे।

एक दिन बेगम साहिबा के सिर में दर्द होने लगा। उन्होंने लौड़ी से कहा- 'जाकर मिर्जा साहब को बुला लो। किसी हकीम के यहाँ से दवा लाये। दौड़, जल्दी कर।'

लौड़ी गयी तो मिर्जा ने कहा - 'चल, अभी आते हैं।'

बेगम का मिजाज गरम था। इतनी ताब कहाँ कि उनके सिर में दर्द हो, और पति शतरंज खेलता रहे। चेहरा सुर्ख हो गया। लौंडी से कहा- 'जाकर कह, अभी चलिए नहीं तो वह आप ही हकीम के यहाँ चली जायँगी।'

मिर्जा जी बड़ी दिलचस्प बाजी खेल रहे थे, दो ही किश्तों में मीर साहब की मात हुई जाती थी, झल्लाकर बोले- 'क्या ऐसा दम लबों पर है? जरा सब्र नहीं होता?'

मीर - अरे, तो जाकर सुन ही आइए न। औरतें नाजुक-मिजाज होती हैं।

मिर्जा - जी हाँ, चला क्यों न जाऊँ। दो किश्तों में आपको मात होती है।

मीर - जनाब, इस भरोसे में न रहिएगा। वह चाल सोची है कि आपके मुहरे धरे रहें, औऱ मात हो जाए। पर जाइए, सुन आइए, क्यों ख्वामह-ख्वाह उनका दिल दुखाइएगा?

मिर्जा - इसी बात पर मात ही कर के जाऊँगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book