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प्रेमचन्द की कहानियाँ 39

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :202
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9800
आईएसबीएन :9781613015377

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्तालीसवाँ भाग


इस पत्र से दयानाथ को प्रसन्नता हुई। सभा के सभी कार्यकर्ता 'भारतदास' महाशय की प्रशंसा कर रहे थे। वे उनको देखने के लिए बेहद उत्सुक थे, इसीलिए उन सभी की दृष्टि बार-बार घड़ी पर जाती थी। ठीक आठ बजे एक सज्जन ढीला-ढाला गेरुआ कुरता पहने, नंगे सिर और नंगे पाँव उस कमरे में आए। लोग खड़े हो गए। सभी की दृष्टि उनके मुख-मंडल पर मडी। लोग चकित थे। ''ऐं, ये तो लाला जानकीनाथ हैं।'' क्षण-भर के आश्चर्य के पश्चात् उन्होंने दुगुने प्रेम और स्वाभिमान से जानकीनाथ का 'वन्देमातरम्' की ध्वनि के साथ अभिवादन किया।

दयानाथ पितृ-भक्ति और देशानुराग के मद से उन्मत्त होकर आँखों में प्रेम और सम्मान के आँसू भरे हुए बढ़े और जानकीनाथ के पैरों पर गिर पड़े। जानकीनाथ ने उन्हें उठाकर छाती से लगा लिया।

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3. विश्वास

उन दिनों मिस जोशी बम्बई सभ्य-समाज की राधिका थी। थी तो वह एक छोटी सी कन्या पाठशाला की अध्यापिका पर उसका ठाट-बाट, मान-सम्मान बड़ी-बडी धन-रानियों को भी लज्जित करता था। वह एक बड़े महल में रहती थी, जो किसी जमाने में सतारा के महाराज का निवास-स्थान था। वहाँ सारे दिन नगर के रईसों, राजों, राज-कर्मचारियों का तांता लगा रहता था। वह सारे प्रांत के धन और कीर्ति के उपासकों की देवी थी। अगर किसी को खिताब का खब्त था तो वह मिस जोशी की खुशामद करता था। किसी को अपने या संबंधी के लिए कोई अच्छा ओहदा दिलाने की धुन थी तो वह मिस जोशी की आराधना करता था। सरकारी इमारतों के ठीके; नमक, शराब, अफीम आदि सरकारी चीजों के ठीके; लोहे-लकड़ी, कल-पुरजे आदि के ठीके सब मिस जोशी ही के हाथों में थे। जो कुछ करती थी वही करती थी, जो कुछ होता था उसी के हाथों होता था। जिस वक्त वह अपनी अरबी घोड़ों की फिटन पर सैर करने निकलती तो रईसों की सवारियां आप ही आप रास्ते से हट जाती थीं, बड़े दुकानदार खड़े हो-हो कर सलाम करने लगते थे। वह रूपवती थी, लेकिन नगर में उससे बढ़कर रूपवती रमणियां भी थीं। वह सुशिक्षिता थीं, वाक्चतुर थी, गाने में निपुण, हंसती तो अनोखी छवि से, बोलती तो निराली घटा से, ताकती तो बांकी चितवन से; लेकिन इन गुणों में उसका एकाधिपत्य न था। उसकी प्रतिष्ठा, शक्ति और कीर्ति का कुछ और ही रहस्य था। सारा नगर ही नहीं; सारे प्रान्त का बच्चा जानता था कि बम्बई के गवर्नर मिस्टर जौहरी मिस जोशी के बिना दामों के गुलाम है। मिस जोशी की आंखों का इशारा उनके लिए नादिरशाही हुक्म है। वह थिएटरों में दावतों में, जलसों में मिस जोशी के साथ साये की भाँति रहते हैं। और कभी-कभी उनकी मोटर रात के सन्नाटे में मिस जोशी के मकान से निकलती हुई लोगों को दिखाई देती है। इस प्रेम में वासना की मात्रा अधिक है या भक्ति की, यह कोई नहीं जानता। लेकिन मिस्टर जौहरी विवाहित हैं और मिस जोशी विधवा, इसलिए जो लोग उनके प्रेम को कलुषित कहते हैं, वे उन पर कोई अत्याचार नहीं करते।

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