लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 37

प्रेमचन्द की कहानियाँ 37

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9798
आईएसबीएन :9781613015353

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

158 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतीसवाँ भाग


धवल चाँदनी छिटकी हुई है। कुटिया के सामने धरती पर बैठकर हरिहर पत्थर के टुकड़ों पर कोयले से प्यार का एक नया गीत लिखने लगता है। लिखते-लिखते पूरी रात बीत जाती है। जब पूर्व में सूर्योदय की लालिमा प्रकट होती है तो वह पत्थर के टुकड़ों को कुटिया के द्वार पर क्रम से रखकर वहाँ से कुछ दूर जाकर एक वृक्ष के नीचे लेट जाता है। पत्थर के टुकड़े इस प्रकार रखे गए हैं कि इंदिरा को उसका प्रेम-संदेश पढ़ने में लेशमात्र भी कठिनाई न हो।

संध्या-पूजन और कीर्तन के पश्चात् जब इंदिरा मुँह अंधेरे बाहर निकलती है तो उसे द्वार पर क्रम से रखे हुए पत्थर के चौकोर टुकड़े दिखाई देते हैं। वह आश्चर्य से एक पत्थर उठा लेती है। उसे उस पर कुछ लिखा हुआ दिखाई देता है। अरे! यह कोई प्रेमगीत है। वह दूसरा पत्थर उठाती है। उस पर भी वही लिखा है। यह इस गीत का दूसरा अन्तरा प्रतीत होता है। फिर वह पत्थर के सभी टुकड़ों को उठाकर पढ़ती है और उन्हें एक पंक्ति में रखकर पूरा गीत पढ़ लेती है। इस गीत में वह दर्द और प्रभाव है कि वह कलेजा थामकर रह जाती है। यह उसी अमर कवि हरिहर की रचना है। इंदिरा के मन में कितनी बार इच्छा उत्पन्न हुई थी कि इस कवि के दर्शन करे लेकिन उसे कुछ पता नहीं था कि वह कौन है, कहाँ रहता है। आज यह प्रेम-संदेश पाकर वह पागलों की भाँति उसकी खोज में निकल पड़ती है। उसे विश्वास है कि वह कहीं आसपास ही होगा। वह उसे चारों ओर तलाश करती है और अन्ततः वह उसे कुटिया के पिछवाड़े जमीन पर सोता हुआ दिखाई देता है। वह आश्चर्यपूरित आनन्द से उसके चेहरे की ओर देखती है। यह देखकर कि उसे मक्खियाँ सता रही हैं, वह अपने आँचल से मक्खियाँ उड़ाने लगती है। हरिहर की नींद खुल जाती है और इंदिरा को आँचल से पंखा झलते देखकर वह इस प्यार का आनन्द लेने के लिए पड़ा रहता है। फिर वह उठकर बैठता है और इंदिरा उसे प्रणाम करती है।

अब हरिहर भी वहीं रहता है। वह कुटिया के अन्दर रहती है, हरिहर बाहर। दोनों साथ-साथ पहाड़ियों पर घूमते हैं और जंगली फल-फूल एकत्रित करते हैं। इंदिरा के गीतों से पहाड़ियाँ गूँजने लगती हैं। अब वह शहर के चौक में अपने गीत सुनाने नहीं जाती, केवल हरिहर ही उसका श्रोता है। मगर अब भी शहर के भक्तों की भीड़ लग जाती है और लोग उसे बहुत से उपहार दे जाते हैं, जिन्हें इंदिरा खुले हाथों से गरीबों में बाँट देती है।

सुबह के समय इंदिरा झील के किनारे एक चट्टान पर बैठी गा रही है और हरिहर सामने बैठा ठाकुरजी के लिए हार गूँथ रहा है। झील में मुर्गाबियाँ, हंस आदि तैर रहे हैं। किनारों पर हिरण, नीलगाय आदि सब मानो उस गीत से मस्त हो रहे हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai