लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 37

प्रेमचन्द की कहानियाँ 37

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9798
आईएसबीएन :9781613015353

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

158 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतीसवाँ भाग


निराश होकर राजकुमारी फिर हरिद्वार घाट की ओर चलती है और माँ-बाप के सामने से निकल जाती है, लेकिन दोनों की दृष्टि दूसरी ओर है, आँखें चार नहीं होतीं।

इतने में कंधे पर मृगछाला डाले, हाथ में तम्बूरा लिए एक जटाधारी महात्मा चले आ रहे हैं। राजकुमारी को घबराया देखकर वे समझ जाते हैं कि यह अपने घरवालों से बिछुड़ गई है। वे उसे गोद में उठा लेते हैं और उससे उसके घर का पता पूछते हैं। लड़की न तो अपने माता-पिता का नाम बता सकती है न अपने घर का पता, वह बस रोए जाती है। डर के कारण उसका मुँह ही नहीं खुलता।

अब साधु के मन में एक नई इच्छा उत्पन्न होती है। लड़की को गोद में लिए वे सोच रहे हैं कि मुझे क्या करना चाहिए? उनका मन कहता है - जब इसके माँ-बाप का पता ही नहीं तो मैं क्या कर सकता हूँ? उनका मन लड़की को छिपा रखने के लिए प्रेरित करता है। वे राजकुमारी को लिए अपनी कुटिया की ओर चले जाते हैं। उनकी लड़की और पत्नी दोनों मर चुके हैं और इसी शोक में वे संसार से विरक्त हो गए हैं। इस चाँद सी लड़की को पाकर उनके हृदय में पितृ-प्रेम पुनः जाग्रत हो उठता है। वे समझते हैं कि परमात्मा ने उन पर दया करके उनके जीवन-दीप को जगमगाने के लिए इसे भेजा है।

पथरीली जगह पर एक साफ सुथरी, बेलों और फूलों से सुसज्जित कुटिया है। पीछे की ओर बहुत नीचे एक नदी बह रही है। कुटिया के सामने छोटा-सा मैदान है। दो हिरन और दो मोर मैदान में घूम रहे हैं। वही महात्मा कुटिया के सामने एक चट्टान पर बैठे तम्बूरे पर गा रहे हैं। राजकुमारी भी उनके सुर में सुर मिलाकर गा रही है। उसकी उम्र अब दस साल की हो गई है। भजन गा चुकने पर लड़की कुटिया में जाकर ठाकुरजी को स्नान कराती है।

साधु भी आ जाते हैं और दोनों ठाकुरजी की स्तुति करते हैं। फिर वे मस्ती में आकर नाचने लगते हैं। थोड़ी देर बाद लड़की भी नाचने लगती है। कीर्तन समाप्त हो जाने के पश्चात् दोनों चरणामृत लेते हैं और साधु राजकुमारी को (जिसका नाम इंदिरा रखा गया है) पढ़ाने लगते हैं। उसे गाना, बजाना, नाचना सिखाने में उन्हें आत्मिक आनन्द प्राप्त होता है। उनकी इच्छा है कि इंदिरा ईश्वर-भजन और जगत्-सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दे। वे उस शुभ घड़ी का स्वप्न देख रहे हैं जब इंदिरा ठाकुरजी के सामने मीरा की भाँति गायेगी और मस्ती में आकर नाचेगी। इंदिरा इतनी रूपवती, इतनी मृदुभाषिणी और नृत्य में इतनी पारंगत है कि जब वह रात में कीर्तन करने लगती है तो भक्तों की भीड़ लग जाती है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai