लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 36

प्रेमचन्द की कहानियाँ 36

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :189
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9797
आईएसबीएन :9781613015346

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

297 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग

5. लाल फीता

विद्या पर जातिविशेष या कुल का एकाधिपत्य नहीं होता। बाबू हरिविलास जाति के कुरमी थे। घर खेतबारी होती थी; पर उन्हें बचपन ही से विद्याभ्यास का व्यसन था। यह विद्याप्रेम देखकर उनके पिता रामविलास महतो ने बड़ी बुद्धिमत्ता से काम लिया। उन्हें हल में न जोता। आप मोटा खाते थे, मोटा पहनते थे और मोटा काम करते थे, लेकिन हरिविलास को कोई कष्ट न होने देते थे। वह पुत्र को रामायण पढ़ते देखकर खुशी से फूले न समाते थे। जब गाँव के लोग उसके पास अपने सम्मन या चिट्ठियाँ पढ़वाने आते तो गर्व से महतो का सिर ऊँचा हो जाता था। बेटे के पास होने की खुशी और फेल होने का रंज उन्हें बेटे से भी अधिक होता था और उसके इनामों को देखकर तो वह, मानो स्वर्ग में पहुँच जाते थे। हरिविलास का उत्साह इन प्रेरणाओं से और भी बढ़ता था, यहाँ तक कि शनै: शनै: मैट्रिकुलेशन की परीक्षा में पास हो गए। रामविलास ने समझा था अब फ़सल काटने के दिन आए लेकिन जब मालूम हुआ कि यह विद्या का अंत नहीं बल्कि वास्तव में आरंभ है तो उनका जोश ठंडा पड़ गया, किंतु हरिविलास का अनुराग अब कठिनाइयों को ध्यान में न लाता था। उस दृढ़ संकल्प के साथ जो बहुधा दरिद्र पर चतुर युवकों में पाया जाता है, वह कालेज में दाखिल हो गया। रामविलास हारकर चुप हो गए। वह दिनोंदिन अशक्त होते जाते थे और खेती परिश्रम का दूसरा नाम है। कभी समय पर सिंचाई न कर सकते, कभी समय पर जुताई न हो सकती। उपज कम हो जाती थी, पर इस दुरवस्था में भी वह हरिविलास की पढ़ाई के खर्च का प्रबंध करते रहते थे। धीरे-धीरे उनकी सारी जमीन रेहन हो गई। यहाँ तक कि जब हरिविलास एम.ए. पास हुए तो एक अंगुल भूमि भी न बची थी। सौभाग्य से उनका नंबर विद्यालय में सबसे ऊँचा था। अतएव उन्हें डिप्टी मजिस्ट्रेटी का पद मिल गया। रामविलास ने यह समाचार सुना तो पागलों की भाँति दौड़ा हुआ ठाकुरद्वारे में गया और ठाकुरजी के पैरों पर गिर पड़ा। उसे स्वप्न में भी ऐसी आशा न थी।

बाबू हरिविलास विद्वान ही न थे, सच्चरित्र भी थे। बड़े निर्भीक, स्पष्टवादी, दयालु और गंभीर। न्याय पर उनकी अटल भक्ति थी। न्यायपथ से पग पर भी न टलते थे। प्रजा उनसे दबती थी, पर उन्हें प्यार करती थी। अधिकारी वर्ग उनका सम्मान करते थे, पर मन में उनसे शंकित रहते थे।

उन्होंने नीतिशास्त्र का खूब अध्ययन किया था। उन्हें इस शास्त्र से बहुत प्रेम था। वह क़ानून को ही अपना अफ़सर समझते थे। वह अफ़सरों को खुश रखना चाहते थे, लेकिन जब उनका हुक्म कानून के विरुद्ध होता तो वह उसे न मानते थे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book