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प्रेमचन्द की कहानियाँ 36

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :189
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9797
आईएसबीएन :9781613015346

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग


लीलावती- ''आप लोग भी तो जो यह कहती है, उस पर विश्वास कर लेती हैं।''

इस हरवाँग में जुगनू को किसी ने जाते न देखा, अपने सिर पर यह तूफ़ान उठते देखकर उसे चुपके से सरक जाने ही में अपनी कुशल मालूम हुई। पीछे के द्वार से निकली और गलियों-गलियों भागी।

मिस खुरशेद ने कहा- ''जरा उससे पूछो, मेरे पीछे क्यों पड़ गई थी!''

मिसेज़ टंडन ने पुकारा पर जुगनू कहीं! तलाश होने लगी। जुगनू गायब! उस दिन से शहर में फिर किसी ने जुगनू की सूरत नहीं देखी। आश्रम के इतिहास में यह मुआमला आज भी उल्लेख और मनोरंजन का विषय बना हुआ है।

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4. लाग-डाँट

जोखू भगत और बेचन चौधरी में तीन पीढ़ियों से अदावत चली आती थी। कुछ डाँड़-मेड़ का झगड़ा था। उनके परदादों में कई बार खून-खच्चर हुआ बापों के समय से मुकदमेबाजी शुरू हुई। दोनों कई बार हाईकोर्ट तक गये। लड़कों के समय में संग्राम की भीषणता और भी बढ़ी। यहाँ तक की दोनों ही अशक्त हो गए। पहले दोनों इसी गाँव में आधे-आधे के हिस्सेदार थे। अब उनके पास उस झगड़ने वाले खेत को छोड़कर एक अँगुल जमीन भी न थी। भूमि गयी, धन गया, मान मर्यादा गयी; लेकिन वह विवाद ज्यों-का-त्यों बना रहा। हाईकोर्ट के धुरंधर नीतिज्ञ एक मामूली-सा झगड़ा तय न कर सके।

इन दोनों सज्जनों ने गाँव को दो विरोधी दलों में विभक्त कर दिया था। एक दल की भंग-बूटी चौधरी के द्वार पर छनती, तो दूसरे दल के चरस गाँजे के दम भगत के द्वार पर लगते थे। स्त्रियों और बालकों के भी दो दल हो गए थे। यहाँ तक की दोनों सज्जनों के सामाजिक और धार्मिक विचारों में भी विभाजन रेखा खिंची हुई थी। चौधरी कपड़े पहने सत्तू खा लेते और भगत को ढोंगी कहते। भगत बिना कपड़े उतारे पानी भी न पीते, और चौधरी को भ्रष्ट बतलाते। भगत सनातन धर्मी बने, तो चौधरी ने आर्यसमाज का आश्रय लिया। जिस बजाज, पंसारी या कुँजड़े से चौधरी सौदा लेते, उसकी ओर भगत जी ताकना भी पाप समझते थे। और भगतजी के हलवाई की मिठाइयाँ, उनके ग्वाले का दूध और तेली का तेल चौधरी के लिए त्याज्य थे। यहाँ तक कि उनके आरोग्य के सिद्धान्तों में भी भिन्नता थी। भगतजी वैद्यक के कायल थे, चौधरी यूनानी प्रथा के माननेवाले। दोनों चाहे रोग से मर जाते, पर अपने सिद्धान्तों को न तोड़ते।

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