कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 35 प्रेमचन्द की कहानियाँ 35प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग
जब इस अनुनय का भी रावण पर कुछ प्रभाव न हुआ, तो सीता हाय राम! हाय राम! कहकर जोर-जोर से रोने लगीं। संयोग से उसी आसपास के प्रदेश में जटायु नाम का एक साधु रहता था। वह रामचन्द्र के साथ प्रायः बैठता था और उन पर सच्चा विश्वास रखता था। उसने जब सीता को रथ पर राम का नाम लेते सुना, तो उसे तुरन्त सन्देह हुआ कि कोई राक्षस सीता को लिए जाता है, अस्त्र लेकर रथ के सामने जाकर खड़ा हो गया और ललकार कर बोला- तू कौन है और सीताजी को कहां लिये जाता है? तुरन्त रथ रोक ले, अन्यथा वह लट्ठ मारुंगा कि भेजा निकल पड़ेगा!
रावण इस समय लड़ना तो न चाहता था, क्योंकि उसे राम और लक्ष्मण के आ जाने का भय था, किन्तु जब जटायु मार्ग में खड़ा हो गया, तो उसे विवश होकर रथ रोकना पड़ा। घोड़ों की बाग खींच ली और बोला- क्या शामत आयी है, जो मुझसे छेड़छाड़ करता है! मैं लंका का राजा रावण हूं। मेरी वीरता के समाचार तूने सुने होंगे! अपना भला चाहता है तो रास्ते से हट जा।
जटायु- तू सीता को कहां लिये जाता है?
रावण- राम ने मेरी बहन की प्रतिष्ठा नष्ट की है, उसी का यह बदला है।
जटायु- यदि अपमान का बदला लेना था, तो मर्दों की तरह सामने क्यों न आया? मालूम हुआ कि तू नीच और कपटी है। अभी सीता को रथ पर से उतार दे!
रावण बड़ा बली था। वह भला बेचारे जटायु की धमकियों को कब ध्यान में लाता था। लड़ने को प्रस्तुत हुआ। जटायु कमजोर था। किन्तु जान पर खेल गया। बड़ी देर तक रावण से लड़ता रहा। यहां तक कि उसका समस्त शरीर घावों से छलनी हो गया। तब वह बेहोश होकर गिर पड़ा और रावण ने फिर घोड़े बढ़ा दिये।
उधर लक्ष्मण कुटिया से चले तो; किन्तु दिल में पछता रहे थे कि कहीं सीता पर कोई आफत आयी, तो मैं राम को मुंह दिखाने योग्य न रहूंगा। ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते थे, उनकी हिम्मत जवाब देती जाती थी। एकाएक रामचन्द्र आते दिखायी दिये। लक्ष्मण ने आगे बढ़कर डरते-डरते पूछा- क्या आपने मुझे बुलाया था?
राम ने इस बात का कोई उत्तर न देकर कहा- क्या तुम सीता को अकेली छोड़कर चले आये? गजब किया। यह हिरन न था, मारीच राक्षस था। हमें धोखा देने के लिए उसने यह भेष बनाया, और तुम्हें धोखा देने के लिए मेरा नाम लेकर चिल्लाया था। क्या तुमने मेरी आवाज़ भी न पहचानी? मैंने तो तुम्हें आज्ञा दी थी कि सीता को अकेली न छोड़ना। मारीच की युक्ति काम कर गयी। अवश्य सीता पर कोई विपत्ति आयी। तुमने बुरा किया।
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