कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 35 प्रेमचन्द की कहानियाँ 35प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग
शूर्पणखा लक्ष्मण के पास गयी और बोली- मैं एक आवश्यकतावश इधर आयी थी। तुम्हारे भाई रामचन्द्र की दृष्टि मुझ पर पड़ गयी, तो वह मुझ पर आसक्त हो गये और मुझसे विवाह करने की इच्छा की। पर मैंने ऐसे पुरुष से विवाह करना पसन्द न किया, जिसकी पत्नी मौजूद है। मेरे योग्य तो तुम हो, तनिक मेरी ओर देखो, ऐसा कोयले कासा चमकता हुआ रंग तुमने और कहीं देखा है? मेरी नाक बिल्कुल चिलम कीसी है और होंठ कितनी सुन्दरता से नीचे लटके हुए हैं। तुम्हारा सौभाग्य है कि मेरा दिल तुम्हारे ऊपर आ गया। तुम मुझसे विवाह कर लो।
लक्ष्मण ने मुस्कराकर कहा- हां, इसमें तो सन्देह नहीं कि तुम्हारा सौन्दर्य अनुपम है और मैं हूं भी भाग्यवान कि मुझसे तुम विवाह करने को प्रस्तुत हो। पर मैं रामचन्द्र का छोटा भाई और चाकर हूं। तुम मेरी पत्नी हो जाओगी, तो तुम्हें सीता जी की सेवा करनी पड़ेगी। तुम रानी बनने योग्य हो, जाकर भाई साहब ही से कहो। वही तुमसे विवाह करेंगे।
शूर्पणखा फिर राम के पास गयी, किन्तु वहां फिर वही उत्तर मिला कि तुम्हारे योग्य लक्ष्मण हैं, उन्हीं के पास जाओ। इस प्रकार उसे दोनों बातों में टालते रहे। जब उसे विश्वास हो गया कि यहां मेरी कामना पूरी न होगी तो वह मुंह बनाबनाकर गालियां बकने लगी और सीताजी से लड़ाई करने पर सन्नद्ध हो गयी। उसकी यह दुष्टता देखकर लक्ष्मण को क्रोध आ गया, उन्होंने शूर्पणखा की नाक काट ली और कानों का भी सफाया कर दिया।
अब क्या था शूर्पणखा ने वह हाय-वाय मचायी कि दुनिया सिर पर उठा ली। तीनों आदमियों को गालियां देती, रोती-पीटती वह खर और दूषण के पास पहुंची और अपने अपमान और अप्रतिष्ठा की सारी कथा कह गयी। ‘भैया, दोनों भाई बड़े दुष्ट हैं। मुझे देखते ही दोनों मुझ पर बुरी दृष्टि डालने लगे और मुझसे विवाह करने के लिए जोर देने लगे। कभी बड़ा भाई अपनी ओर खींचता था, कभी छोटा भाई। जब मैं इस पर सहमत न हुई तो दोनों ने मेरे नाक-कान काट लिये। तुम्हारे रहते मेरी यह दुर्गति हुई। अब मैं किसके पास शिकायत लेकर जाऊं? जब तक उन दोनों के सिर मेरे सामने न आ जायेंगे, मेरे लिए अन्नजल निषिद्ध है।’
खर और दूषण यह हाल सुनकर क्रोध से पागल हो गये। उसी समय अपनी सेना को तैयार हो जाने का आदेश दिया। दमके-दम में चौदह हजार आदमी राम और लक्ष्मण को इस खलता का दण्ड देने चले। आगे-आगे नकटी शूर्पणखा रोती चली जा रही थी।
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