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प्रेमचन्द की कहानियाँ 35

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :380
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9796
आईएसबीएन :9781613015339

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग


भरत जी को क्या खबर कि दूत इस एक वाक्य में क्या कह गया। उन्होंने नाना और मामा से आज्ञा ली और उसी दिन शत्रुघ्न के साथ अयोध्या के लिये प्रस्थान किया। रथ के घोड़े हवा से बातें करने वाले थे। तीसरे ही दिन वह अयोध्या में प्रविष्ट हुए। किन्तु यह नगर पर उदासी क्यों छायी हुई है? नगर श्रीहीन सा क्यों हो रहा है? गलियों में धूल क्यों उड़ रही है? बाजार क्यों बन्द हैं? रास्ते में जो भरत को देखता था, बिना इनसे कुछ बातचीत किये, बिना कुशलक्षेम पूछे या प्रणाम किये कतरा कर निकल जाता था। उनके आगे बढ़ आने पर लोग कानाफूसी करने लगते थे। भरत की समझ में कुछ न आता था कि भेद क्या है। कोई उनकी ओर आकृष्ट भी न होता था कि उससे कुछ पूछें। राजमहल तक पहुंचना उनके लिए कठिन हो गया। राजमहल पहुंचे तो उसकी दशा और भी हीन थी। मालूम होता था कि उसकी जान निकल गयी है, केवल मृत शरीर शेष है। खिन्नता विराज रही थी। कई दिन से दरवाजे पर झाडू तक न दी गयी थी। दोचार सन्तरी खड़े जम्हाइयां ले रहे थे। वह भी भरत को देखकर एक कोने में दुबक गये, जैसे उनकी सूरत भी नहीं देखना चाहते।

द्वार पर पहुंचते ही भरत और शत्रुघ्न ने रथ से कूदकर अंदर प्रवेश किया। महाराज अपने कमरे में न थे। भरत ने समझा, अवश्य कैकेयी माता के प्रासाद में होंगे। वह प्रायः कैकेयी ही के प्रासाद में रहते थे। लपके हुए माता के पास गये। महाराज का वहां भी पता न था। कैकेयी विधवाओं के से वस्त्र पहने खड़ी थी। भरत को देखते ही वह फूली न समायी। आकर भरत को गले से लगा लिया और बोली- जीते रहो बेटा। रास्ते में कोई कष्ट तो नहीं हुआ?

भरत ने माता की ओर आश्चर्य से देखकर कहा- जी नहीं, बड़े आराम से आया। महाराज कहां हैं? तनिक उन्हें प्रणाम तो कर लूं?

कैकेयी ने ठंडी आह खींचकर कहा- बेटा, उनकी बात क्या पूछते हो। उन्हें परलोक सिधारे तो आज एक सप्ताह हो गया। क्या तुमसे अभी तक किसी ने नहीं कहा?

भरत के सिर पर जैसे शोक का पहाड़ टूट पड़ा। सिर में चक्कर-सा आने लगा। वह खड़े न रह सके। भूमि पर बैठकर रोने लगे। जब तनिक जी संभला तो बोले- उन्हें क्या हुआ था माता जी? क्या बीमारी थी? हाय! मुझ अभागे को उनके अन्तिम दर्शन भी प्राप्त न हुए।

कैकेयी ने सिर झुकाकर कहा- बीमारी तो कुछ नहीं थी बेटा। राम, लक्ष्मण और सीता के वनवास के शोक से उनकी मृत्यु हुई। राम पर तो वह जान देते थे।

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