लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 34

प्रेमचन्द की कहानियाँ 34

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :146
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9795
आईएसबीएन :9781613015322

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

428 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौंतीसवाँ भाग


क्या तुम समझते हो मुझे छोड़कर भाग जाओगे?
भाग सकोगे?
मैं तुम्हारे गले में हाथ डाल दूँगी;
मैं तुम्हारी कमर में कर-पाश कस दूँगी;
मैं तुम्हारा पाँव पकड़कर रोक लूँगी;
तब उस पर सिर रख दूँगी।

क्या तुम समझते हो, मुझे छोड़कर भाग जाओगे?
छोड़ सकोगे?
मैं तुम्हारे अधरों पर अपने कपोल चिपका दूँगी;
उस प्याले में जो मादक सुधा है-
उसे पीकर तुम मस्त हो जाओगे।
और मेरे पैरों पर सिर रख दोगे।
क्या तुम समझते हो मुझे छोड़कर भाग जाओगे?
-'कामाक्षी'

शर्माजी को हर बार इस कविता में एक नया रस मिलता था। उन्होंने उसी क्षण कामाक्षी देवी के नाम यह पत्र लिखा-

'आपकी कविता पढ़कर मैं नहीं कह सकता, मेरे चित्त की क्या दशा हुई। हृदय में एक ऐसी तृष्णा जाग उठी है, जो मुझे भस्म किये डालती है। नहीं जानता, इसे कैसे शांत करूँ? बस, यही आशा है कि इसको शीतल करने वाली सुधा भी वहीं मिलेगी, जहाँ से यह तृष्णा मिली है। मन मतंग की भाँति जंजीर तुड़ाकर भाग जाना चाहता है। जिस हृदय से यह भाव निकले हैं, उसमें प्रेम का कितना अक्षय भंडार है, उस प्रेम का, जो अपने को समर्पित कर देने में ही आनंद पाता है। मैं आपसे सत्य कहता हूँ, ऐसी कविता मैंने आज तक नहीं पढ़ी थी और इसने मेरे अंदर जो तूफान उठा दिया है, वह मेरी विधुर शांति को छिन्न-भिन्न किये डालता है। आपने एक गरीब की फूस की झोपड़ी में आग लगा दी है; लेकिन मन यह स्वीकार नहीं करता कि यह केवल विनोद-क्रीड़ा है। इन शब्दों में मुझे एक ऐसा हृदय छिपा हुआ ज्ञात होता है, जिसने प्रेम की वेदना सही है, जो लालसा की आग में तपा है। मैं इसे अपना परम सौभाग्य समझूँगा, यदि आपके दर्शनों का सौभाग्य पा सका। यह कुटिया अनुराग की भेंट लिये आपका स्वागत करने को तड़प रही है।'
'सप्रेम'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book