लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 33

प्रेमचन्द की कहानियाँ 33

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :100
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9794
आईएसबीएन :9781613015315

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

165 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तैंतीसवाँ भाग


मानकी चिढ़कर बोली- पहले तो वकीलों की इतनी निन्दा न करते थे।

ईश्वरचंद्र ने उत्तर दिया- तब अनुभव न था। बाहरी टीमटाम ने वशीकरण कर दिया था।

मानकी- क्या जाने तुम्हें पत्रों से क्यों इतना प्रेम है! मैं तो जिसे देखती हूँ, अपनी कठिनाइयों का रोना ही रोते हुए पाती हूँ। कोई अपने ग्राहकों से नए ग्राहक बनाने का अनुरोध करता है, कोई चंदा न वसूल होने की शिकायत करता है। बता दो कि कोई उच्च शिक्षा-प्राप्त कभी इस पेशे में आया है? जिसे कुछ नहीं सूझता, जिसके पास न कोई सनद है न कोई डिग्री, वही पत्र निकाल बैठता है, और भूखों मरने की अपेक्षा रूखी रोटियों पर ही सन्तोष करता है। लोग विलायत जाते हैं, कोई पढ़ता है डाक्टरी, कोई इंजीनियरी, कोई सिविल सर्विस। लेकिन आज तक न सुना कि कोई एडीटरी का काम सीखने गया हो। क्यों सीखे? किसी को क्या पड़ी है कि जीवन की महत्त्वाकांक्षाओं को खाक में मिलाकर त्याग और विराग में उम्र काटे। हाँ, जिनको सनक सवार हो गई हो, उनकी बात निराली है।

ईश्वरचंद्र- जीवन का उद्देश्य केवल धन-संचय करना ही नहीं है।

मानकी- अभी तुमने वकीलों की निन्दा करते हुए कहा, ये लोग दूसरों की कमाई खाकर मोटे होते हैं। पत्र चलाने वाले भी तो दूसरों की ही कमाई खाते हैं।

ईश्वरचंद्र ने बगलें झांकते हुए कहा- हम लोग दूसरों की कमाई खाते हैं, तो दूसरों पर जान भी देते हैं। वकीलों की भाँति किसी को लूटते नहीं।

मानकी- यह तुम्हारी हठधर्मी है। वकील भी तो अपने मुवक्किलों के लिए जान लड़ा देते हैं। उनकी कमाई भी उतनी ही हलाल है, जितनी पत्र वालों की। अंतर केवल इतना है कि एक की कमाई पहाड़ी सोता है, दूसरे की बरसाती नाला। एक में नित्य जल-प्रवाह होता है, दूसरे में नित्य धूल उड़ा करती है। बहुत हुआ, तो बरसात में घड़ी-दो-घड़ी के लिए पानी आ गया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book