| कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 33 प्रेमचन्द की कहानियाँ 33प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तैंतीसवाँ भाग
यह कहता हुआ वह मैकू के सामने बैठ गया। 
मैकू ने स्वयंसेवक के चेहरे पर निगाह डाली। उसकी पाँचों उँगलियों के निशान झलक रहे थे। मैकू ने इसके पहले अपनी लाठी से टूटे हुए कितने ही सिर देखे थे, पर आज की-सी ग्लानि उसे कभी न हुई थी। वह पाँचों उँगलियों के निशान किसी पंचशूल की भाँति उसके हृदय में चुभ रहे थे। 
कादिर चौकीदारों के पास खड़ा सिगरेट पीने लगा। वहीं खड़े-खड़े बोला- अब, खड़ा क्या देखता है, लगा कसके एक हाथ। 
मैकू ने स्वयंसेवक से कहा- तुम उठ जाओ, मुझे अन्दर जाने दो। 
‘आप मेरी छाती पर पाँव रख कर चले जा सकते हैं।’ 
‘मैं कहता हूँ, उठ जाओ, मैं अन्दर ताड़ी न पीउँगा, एक दूसरा ही काम है।’ 
उसने यह बात कुछ इस दृढ़ता से कही कि स्वयंसेवक उठकर रास्ते से हट गया। मैकू ने मुस्करा कर उसकी ओर ताका। 
स्वयंसेवक ने फिर हाथ जोड़कर कहा- अपना वादा भूल न जाना। 
एक चौकीदार बोला- लात के आगे भूत भागता है, एक ही तमाचे में ठीक हो गया! 
कादिर ने कहा- यह तमाचा बच्चा को जन्म-भर याद रहेगा। मैकू के तमाचे सह लेना मामूली काम नहीं है। 
चौकीदार- आज ऐसा ठोंको इन सबों को कि फिर इधर आने को नाम न लें। 
कादिर- खुदा ने चाहा, तो फिर इधर आयेंगे भी नहीं। मगर हैं सब बड़े हिम्मती। जान को हथेली पर लिए फिरते हैं। 
मैकू भीतर पहुँचा, तो ठीकेदार ने स्वागत किया- आओ मैकू मियाँ! एक ही तमाचा लगा कर क्यों रह गये? एक तमाचे का भला इन पर क्या असर होगा? बड़े लतखोर हैं सब। कितना ही पीटो, असर ही नहीं होता। बस आज सबों के हाथ-पाँव तोड़ दो; फिर इधर न आयें। 
			
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