कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 30 प्रेमचन्द की कहानियाँ 30प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तीसवाँ भाग
उसी अवसर पर चित्तौड़ के राणा भोजराज भी मंदिर में आए। उन्होंने प्रभा का मुखचंद्र देखा। उनकी छाती पर साँप लोटने लगा!
झालावार में बड़ी धूम थी। राजकुमारी प्रभा का आज विवाह होगा। मंदार से बारात आएगी। मेहमानों के सेवा-सम्मान की तैयारियाँ हो रही थीं। दूकानें सजी हुई थीं। नौबतखाने आमोदालाप से गूँजते थे। सड़कों पर सुगंधि छिडकी जाती थी। अट्टालिकाएँ पुष्पलताओं से शोभायमान थीं पर जिसके लिए ये सब तैयारियों हो रही थीं, वह अपनी वाटिका के एक वृक्ष के नीचे उदास बैठी हुई रो रही थी।
रनिवास में डोमिनियाँ आनंदोत्सव के गीत गा रही थी। कहीं सुंदरियों के हावभाव थे, कहीं आभूषणों की चमक-दमक, कहीं हास्य-परिहास्य की बहार। नाइन बात-वात पर तेज होती थी। मालिन गर्व से फूली न समाती थी। धोबिन आँर्खे दिखाती थी। कुम्हारिन मटके के सदृश फूली हुई थी। मंडप के नीचे पुरोहित जी बात-बात पर सुवर्ण-मुद्राओं के लिए ठुनकते थे। रानी सिर के बाल खोले भूखी-प्यासी चारों ओर दौड़ती थी। सब की बौछारें सहती थी और अपने भाग्य को सराहती थी। दिल खोलकर हीरे-जवाहिर लुटा रही थीं।
आज प्रभा का विवाह है, बड़े भाग्य से ऐसी बातें सुनने में आती हैं। सब-के-सब अपनी-अपनी धुन में मस्त हैं। किसी को प्रभा की फ़िक्र नहीं है, जो वृक्ष के नीचे अकेली बैठी रो रही है।
एक रमणी ने आकर नाइन से कहा- ''बहुत बढ़-बढ़कर बातें न कर, कुछ राजकुमारी का भी ध्यान है? चल उनके बाल गूँथ।''
नाइन ने दाँतों तले जीभ दबाई। दोनों प्रभा को ढूँढती हुई बाग में पहुँचीं। प्रभा ने उन्हें देखते ही आँसू पोंछ डाले। नाइन मोतियों से माँग भरने लगी और प्रभा सिर नीचा किए आँखों से मोती बरसाने लगी।
रमणी ने सजल नेत्र होकर कहा- ''बहिन, इतना दिल मत छोटा करो। मुँह माँगी मुराद पाकर इतनी निढाल क्यों होती हो?''
प्रभा ने सहेली की ओर देखकर कहा- ''बहिन न जाने क्यों दिल बैठा जाता है।''
सहेली ने छेड़ कर कहा- ''पिया मिलन की बेकली है।''
प्रभा उदासीन भाव से बोली- ''कोई मेरे मन में बैठा कह रहा है कि अब उनसे मुलाक़ात न होगी।''
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