लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 28

प्रेमचन्द की कहानियाँ 28

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9789
आईएसबीएन :9781613015261

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

165 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का अट्ठाइसवाँ भाग


बंगाली बाबू ने लाला साईंदास की आलोचना की- वह समझता था संसार में सब मनुष्य भलामानस है। हमको उपदेश करता था। अब उसकी आँख खुल गई है। अकेला घर में बैठा रहता है। किसी को मुँह नहीं दिखाता। हम सुनता है, वह वहाँ से भाग जाना चाहता था। परन्तु बड़ा साहब बोला, भागेगा तो तुम्हारा ऊपर वारंट जारी कर देगा। अब साईंदास की जगह बंगाली बाबू मैनेजर हो गये थे।

इसके बाद कुँवर साहब बरहल आये। भाइयों ने यह वृत्तांत सुना, तो बिगड़े, अदालत की धमकी दी। माता जी को ऐसा धक्का पहुँचा कि वह उसी दिन बीमार हो कर एक ही सप्ताह में इस संसार से विदा हो गयीं। सावित्री को भी चोट लगी, पर उसने केवल संतोष ही नहीं किया, पति की उदारता और त्याग की प्रशंसा भी की। रह गये लाल साहब। उन्होंने जब देखा कि अस्तबल से घोड़े निकले जाते हैं, हाथी मकनपुर के मेले में बिकने के लिए भेज दिये गये हैं और कहार विदा किये जा रहे हैं, तो व्याकुल हो पिता से बोले- बाबू जी, यह सब नौकर, घोड़े, हाथी कहाँ जा रहे हैं?

कुँवर- एक राजा साहब के उत्सव में।

लाल जी- कौन से राजा?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book