कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 25 प्रेमचन्द की कहानियाँ 25प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पच्चीसवाँ भाग
प्रातःकाल तूरया को देखकर मेरा नौकर आश्चर्य करने लगा। मैंने उससे कहा- यह मेरी सगी बहन है।
नौकर को मेरी बात पर विश्वास न हुआ। तब मैंने विस्तारपूर्वक सब हाल कहा और उसे उसी समय अपने बाप की लाश की खबर लेने के लिए भेजा।
नौकर ने आकर कहा, लाश अभी तक थाने पर रक्खी हुई है।
मैंने बड़े साहब के नाम एक पत्र लिखकर सब हाल बता दिया, और लाश पाने के लिए दरख्वास्त की। उसी समय साहब के यहाँ से स्वीकृति आ गयी।
एक पत्र लिखकर मेजर साहब को भी बुलवाया।
मेजर साहब ने आकर कहा- क्या बात है, असद? इतनी जल्दी आने के लिए क्यों लिखा?
मैंने हँसते हुए कहा- मेजर साहब, मेरा नाम असद नहीं रहा। मेरा असली नाम है नाजिर।
मेजर साहब ने साश्चर्य मेरी ओर देखते हुए कहा- रात भर में तुम पागल तो नहीं हो गये?
मैंने हँसते हुए कहा- नहीं सरदार साहब, अभी और सुनिए। तूरया मेरी सगी बहन है, और जिसे कल मैंने मारा, वह मेरा बाप था।
सरदार साहब मेरी बात सुनकर मानो आकाश से गिर पड़े। उनकी आँखें कपाल पर चढ़ गयीं। उन्होंने कहा- क्यों असद तुम मुझे भी पागल कर डालोगे?
मैंने सरदार साहब का हाथ पकड़कर कहा- आइए, तूरया के मुँह से ही सब हाल सुन लीजिए। तूरया मेरे यहाँ बैठी हुई आपकी प्रतीक्षा कर रही है।
सरदार साहब सन्देह की हालत में मेरे पीछे-पीछे चले। तूरया उन्हें आते देखकर उठ खड़ी हुई और हँसती हुई बोली- कैदी, तुम वही गीत फिर गाओ। तूरया की बात सुनकर मैं और सरदार साहब हँसने लगे।
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