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प्रेमचन्द की कहानियाँ 25

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9786
आईएसबीएन :9781613015230

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पच्चीसवाँ भाग


एक दिन रात्रि के समय मैं एक पश्तो गीत गा रहा था। मजनू झुलसाने वाले बगूलों से कह रहा था- तुममें क्या वह हसरत नहीं है, जो काफलों को जलाकर खाक कर देती है। आखिर वह गरमी मुझे क्यों नहीं जलाती? क्या इसीलिए कि मेरे अन्दर एक ज्वाला भरी हुई है?

देखो, जब लैला ढूँढती हुई यहाँ आवे, तो मेरा शरीर बालू से ढँक देना, नहीं तो शीशे की तरह लैला का दिल टूट जायगा।

मैंने गाना बन्द कर दिया। उसी समय छेद से किसी ने कहा- कैदी, फिर तो गाओ।

मैं चौंक पड़ा। कुछ खुशी भी हुई, कुछ आश्चर्य भी। पूछा- तुम कौन हो?

उसी छेद से उत्तर मिला- मैं हूँ तूरया, सरदार की लड़की।

मैंने पूछा- क्या तुमको यह गाना पसन्द है?

तूरया ने उत्तर दिया- हाँ, कैदी गाओ, मैं फिर सुनना चाहती हूँ।

मैं हर्ष से गाने लगा। गीत समाप्त होने पर तूरया ने कहा- तुम रोज यही गीत मुझे सुनाया करो। इसके बदले में मैं तुमको और रोटियाँ और पानी दूँगी।

तूरया चली गयी। इसके बाद मैं सदा रात के समय वह गीत गाता और तूरया सदा दीवार के पास आकर सुनती।

मेरे मनोरंजन का एक मार्ग और निकल आया।

धीरे-धीरे एक मास बीत गया, पर किसी ने अभी मेरे छुड़ाने के लिए रुपया न भेजा। ज्यों-ज्यों दिन बीतते जाते, मैं अपने जीवन से निराश होता जाता।

ठीक एक महीने बाद सरदार ने आकर कहा- कैदी, अगर कल तक रुपया न आयेगा, तो तुम मार डाले जाओगे। मैं अब रोटियाँ नहीं खिला सकता।

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