कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 25 प्रेमचन्द की कहानियाँ 25प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पच्चीसवाँ भाग
मैं चकरा कर बोला- अच्छा सरदार, मैं तुमको दो हजार दिलवा दूँगा।
सरदार रुक गया और बड़ी जोर से हँसा। उसकी हँसी की प्रतिध्वनि ने निर्जीव पहाड़ों को भी कँपा दिया। मैंने मन-ही-मन कहा बड़ा भयानक आदमी है।
गिरोह के दूसरे आदमी अपनी-अपनी लूट का माल सरदार के सामने रखने लगे। उसमें कई बंदूकें, कारतूस, रोटियाँ और कपड़े थे। मेरी भी तलाशी ली गयी। मेरे पास एक छः फायर का तमंचा था। तमंचा पाकर सरदार उछल पड़ा और उसे फिरा-फिरा कर देखने लगा। वहीं पर उसी समय हिस्सा-बाँट शुरू हो गया। बराबर-बराबर का हिस्सा लगा, लेकिन मेरा रिवाल्वर उसमें नहीं शामिल किया गया। वह सरदार साहब की खास चीज थी।
थोड़ी देर विश्राम करने के बाद फिर यात्रा शुरू हुई। इस बार मेरे पैर खोल दिये गये और साथ-साथ चलने को कहा। मेरी आँखों पर पट्टी भी बाँध दी गई, ताकि मैं रास्ता न देख सकूँ। मेरे हाँथ रस्सी से बँधे हुए थे, और उसका सिरा एक अफ्रीदी के हाथ में था।
चलते-चलते मेरे पैर दुखने लगे, लेकिन उनकी मंजिल पूरी न हुई। सिर पर जेठ का सूरज चमक रहा था, पैर जले जा रहे थे, प्यास से गला सूखा जा रहा था, लेकिन वे बराबर चले जा रहे थे। आपस में बातें करते जाते थे, लेकिन अब मैं उनकी एक बात भी न समझ पाता। कभी-कभी एक-आध शब्द तो समझ जाता, लेकिन बहुत अंशों में मैं कुछ भी न समझ पाता था। वे लोग इस समय अपनी विजय पर प्रसन्न थे, और एक अफ्रीदी ने अपनी भाषा में एक गीत गाना शुरू किया। गीत बड़ा ही अच्छा था।
असदखाँ ने पूछा- सरदार साहब, वह गीत क्या था?
सरदार साहब ने कहा- उस गीत का भाव याद है। भाव यह है कि एक अफ्रीदी जा रहा है तो उसकी स्त्री कहती है-कहाँ जाते हो?
युवक उत्तर देता है- जाते हैं तुम्हारे लिए रोटी और कपड़ा लाने।
स्त्री पूछती है- और कुछ अपने बच्चों के लिए नहीं लाओगे?
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