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प्रेमचन्द की कहानियाँ 25

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9786
आईएसबीएन :9781613015230

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पच्चीसवाँ भाग


एक दिन मैं कई मित्रों के साथ थिएटर देखने चला गया, ताकीद कर गया कि  तुम खाना खाकर सो रहना। तीन बजे रात को लौटा तो देखा कि वह बैठा हुआ है। मैंने पूछा- तुम सोए नहीं? बोला- नींद नहीं आयी। उस दिन से मैंने थियटर जाने का नाम न लिया। बच्चों में प्यार की जो भूख होती है- दूध, मिठाई और खिलौनों से भी ज्यादा मादक-जो माँ की गोद के सामने संसार की निधि की भी परवाह नहीं करते, मोहन की भूख कभी संतुष्ट न होती थी। पहाड़ों से टकराने वाली सारस की आवाज की तरह वह सदैव उसकी नसों में गूँजा करती थी। जैसे भूमि पर फैली लता कोई सहारा पाते ही उससे चिपट जाती है, वही हाल मोहन का था। वह मुझसे ऐसा चिपट गया था कि पृथक किया जाए, तो उसकी कोमल बेल के टुकड़े-टुकड़े हो जाते। वह मेरे साथ तीन साल रहा और तब मेरे जीवन में प्रकाश की एक रेखा-सी डालकर अंधकार में विलीन हो गया। उस जीर्ण काया में कैसे-कैसे अरमान भरे हुए थे! कदाचित् ईश्वर ने मेरे जीवन में एक अवलम्बन की सृष्टि करने के लिए उसे भेजा था। उद्देश्य पूरा हो गया, तो वह क्यों रहता।

गर्मियों की छुट्टी थी। दो छुट्टियों में मोहन मेरे ही साथ रहा था। मामा जी के आग्रह करने पर भी घर न गया। अबकी कालेज के छात्रों ने काश्मीर यात्रा करने का निश्चय किया और मुझे उसका अध्यक्ष बनाया। काश्मीर-यात्रा की अभिलाषा मुझे चिरकाल से थी। इस अवसर को गनीमत समझा। मोहन को मामाजी के पास भेजकर मैं काश्मीर चला गया। दो महीने के बाद लौटा तो मालूम  हुआ कि मोहन बीमार है। काश्मीर में मुझे बार-बार उसकी याद आती थी और जी चाहता था कि लौट जाऊँ। मुझे उस पर इतना प्रेम है, इसका अंदाज मुझे काश्मीर जाकर हुआ; लेकिन मित्रों ने पीछा न छोड़ा। उसकी बीमारी की खबर पाते ही मैं अधीर हो उठा और दूसरे ही दिन उसके पास जा पहुँचा। मुझे देखते ही उसके पीले और सूखे चेहरे पर आनंद की स्फूर्ति झलक पड़ी। मैं दौड़कर उसके गले से लिपट गया। उसकी आँखों में वह दूरदृष्टि और चेहरे पर वह अलौकिक आभा थी, जो मँडराती हुई मृत्यु की सूचना देती  है। मैंने आवेश में काँपते हुए स्वर से पूछा- यह तुम्हारी क्या दशा है मोहन? दो ही महीने में यह नौबत पहुँच गई? मोहन ने सरल  मुस्कान के साथ कहा- आप कश्मीर की सैर करने गये थे मैं आकाश की सैर करने जा रहा हूँ।

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