कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 25 प्रेमचन्द की कहानियाँ 25प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पच्चीसवाँ भाग
एक दिन प्रभा ने सुना कि पशुपति योरोप से लौट आया है और वह योरोपीय स्त्री उसके साथ नहीं है। बल्कि उसके लौटने का कारण वही स्त्री हुई है। वह औरत बारह साल तक उसकी सहयोगिनी रही पर एक दिन एक अंग्रेज युवक के साथ भाग गई। इस भीषण और अत्यन्त कठोर आघात ने पशुपति की कमर तोड़ दी। वह नौकरी छोड़कर घर चला आया। अब उसकी सूरत इतनी बदल गई थी उसके मित्र लोग उससे बाजार में मिलते तो उसे पहचान न सकते थे - मालूम होता था, कोई बूढ़ा कमर झुकाये चला जाता है। उसके बाल तक सफेद हो गये।
घर आकर पशुपति ने एक दिन शान्ता को बुला भेजा। इस तरह शांता उसके घर आने-जाने लगी। वह अपने पिता की दशा देखकर मन ही मन कुढ़ती थी। इसी बीच में शान्ता के विवाह के सन्देश आने लगे, लेकिन प्रभा को अपने वैवाहिक जीवन में जो अनुभव हुआ था वह उसे इन सन्देशों को लौटाने पर मजबूर करता था। वह सोचती, कहीं इस लडकी की भी वही गति न हो जो मेरी हुई है। उसे ऐसा मालूम होता था कि यदि शान्ता का विवाह हो गया तो इस अन्तिम अवस्था में भी मुझे चैन न मिलेगा और मरने के बाद भी मैं पुत्री का शोक लेकर जाऊंगी। लेकिन अन्त में एक ऐसे अच्छे घराने से सन्देश आया कि प्रभा उसे नाहीं न कर सकी। घर बहुत ही सम्पन्न था, वर भी बहुत ही सुयोग्य। प्रभा को स्वीकार ही करना पड़ेगा। लेकिन पिता की अनुमति भी आवश्यक थी। प्रभा ने इस विषय में पशुपति को एक पत्र लिखा और शान्ता के ही हाथ भेज दिया।
जब शान्ता पत्र लेकर चली गई तब प्रभा भोजन बनाने चली गई। भाति-भांति की अमंगल कल्पनाएं उसके मन में आने लगीं और चूल्हे से निकलते धुएं मे उसे एक चित्र-सा दिखाई दिया कि शान्ता के पतले-पतले होंठ सूखे हूए है और वह कांप रही है और जिस तरह प्रभा पतिगृह से आकर माता की गोद में गिर गई थी उसी तरह शान्ता भी आकर माता की गोद में गिर पड़ी है।
पशुपति ने प्रभा का पत्र पढ़ा तो उसे चुप-सी लग गई। उसने अपना सिगरेट जलाया और जोर-जोर कश खींचने लगा। फिर वह उठ खड़ा हुआ और कमरे में टहलने लगा। कभी मूंछों को दांतों से काटता, कभी खिचड़ी दाढ़ी को नीचे की ओर खींचता। सहसा वह शान्ता के पास आकर खड़ा हो गया और कांपते हुए स्वर में बोला- बेटी जिस घर को तेरी मां स्वीकार करती हो उसे मैं कैसे नाहीं कर सकता हूं। उन्होंने बहुत सोच-समझकर हामी भरी होगी। ईश्वर करे तुम सदा सौभाग्यवती रहो। मुझे दुख है तो इतना ही कि जब तू अपने घर चली जायेगी तब तेरी माता अकेली रह जायगी। कोई उसके आंसू पोंछने वाला न रहेगा। कोई ऐसा उपाय सोच कि तेरी माता का क्लेश दूर हो और मैं भी इस तरह मारा-मारा न फिरूं। ऐसा उपाय तू ही निकाल सकती है। सम्भव है लज्जा और संकोच के कारण मैं अपने हृदय की बात तुझसे कभी न कह सकता, लेकिन अब तू जा रही है और मुझे संकोच का त्याग करने के सिवा कोई उपाय नहीं है। तेरी मां तुझे प्यार करती है और तेरा अनुरोध कभी न टालेगी। मेरी दशा जो तू अपनी आंखों से देख रही है यही उनसे कह देना। जा, तेरा सौभाग्य अमर हो।
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