कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 25 प्रेमचन्द की कहानियाँ 25प्रेमचंद
|
317 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पच्चीसवाँ भाग
जिसे ईश्वर ने मारा है, उसे क्या कोई मारे! जो बातें उसके लिए वर्जित थीं उनकी ओर उसका मन ही न जाता था। उसके लिए उसका अस्तित्व ही न था। जवानी के इस उमड़े हुए सागर में मतवाली लहरें न थीं, डरावनी गरज न थी, अचल शान्ति का साम्राज्य था।
होली आयी, सबने गुलाबी साडिय़ाँ पहनीं, गंगी की साड़ी न रंगी गयी। माँ ने पूछा- बेटी, तेरी साड़ी भी रंग दूँ।
गंगी ने कहा- नहीं अम्माँ, यों ही रहने दो। भावज ने फाग गाया। वह पकवान बनाती रही। उसे इसी में आनन्द था।
तीसरे पहर दूसरे गाँव के लोग होली खेलने आये। यह लोग भी होली लौटाने जाएँगे। गाँवों में यही परस्पर व्यवहार है। मैकू महतो ने भंग बनवा रखी थी, चरस-गाँजा, माजूम सब कुछ लाये थे। गंगी ने ही भंग पीसी थी, मीठी अलग बनायी थी, नमकीन अलग। उसका भाई पिलाता था, वह हाथ धुलाती थी। जवान सिर नीचा किये पीकर चले जाते, बूढ़े, गंगी से पूछ लेते- अच्छी तरह हो न बेटी, या चुहल करते- क्यों री गंगिया भावज तुझे खाना नहीं देती क्या, जो इतनी दुबली हो गयी है! गंगिया हँसकर रह जाती। देह क्या उसके बस की थी। न जाने क्यों वह मोटी हुई थी।
भंग पीने के बाद लोग फाग गाने लगे। गंगिया अपनी चौखट पर खड़ी सुन रही थी। एक जवान ठाकुर गा रहा था। कितना अच्छा स्वर था, कैसा मीठा। गंगिया को बड़ा आनन्द आ रहा था। माँ ने कई बार पुकारा- सुन जा। वह न गयी। एक बार गयी भी तो जल्दी से लौट आयी। उसका ध्यान उसी गाने पर था। न जाने क्या बात उसे खींचे लेती थी, बाँधे लेती थी। जवान ठाकुर भी बार-बार गंगिया की ओर देखता और मस्त हो-होकर गाता। उसके साथ वालों को आश्चर्य हो रहा था। ठाकुर को यह सिद्धि कहाँ मिल गयी! वह लोग विदा हुए तो गंगिया चौखटे पर खड़ी थी। जवान ठाकुर ने भी उसकी ओर देखा और चला गया।
गंगिया ने अपने बाप से पूछा- कौन गाता था दादा?
मैकू ने कहा- कोठार के बुद्धूसिंह का लडक़ा है, गरीबसिंह। बुद्धू रीति व्यवहार में आते-जाते थे। उनके मरने के बाद अब वही लडक़ा आने-जाने लगा।
गंगी- यहाँ तो पहले पहल आया है?
|