लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 24

प्रेमचन्द की कहानियाँ 24

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9785
आईएसबीएन :9781613015223

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

289 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौबीसवाँ भाग


‘हां तुमने, तुम्हीं ने लाहौर में मेरे पति की हत्या की, जब वे एक मुकदमें की पैरवी करने गये थे। क्या तुम इससे इनकार कर सकते हो? मेरे पति की आत्मा ने खुद तुम्हारा पता बतलाया है।’

‘तो तुम मिस्टर व्यास की बीवी हो?’

‘हां, मैं उनकी बदनसीब बीवी हूँ और तुम मेरा सोहाग लूटनेवाले हो! गो तुमने मेरे ऊपर एहसान किये हैं लेकिन एहसानों से मेरे दिल की आग नहीं बुझ सकती। वह तुम्हारे खून ही से बुझेगी।’

ईश्वरदास ने माया की ओर याचना-भरी आंखों से देखकर कहा- अगर आपका यही फैसला है तो लीजिए यह सर हाजिर है। अगर मेरे खून से आपके दिल की आग बुझ जाय तो मैं खुद उसे आपके कदमों पर गिरा दूँगा। लेकिन जिस तरह आप मेरे खून से अपनी तलवार की प्यास बुझाना अपना धर्म समझती हैं उसी तरह मैंने भी मिस्टर व्यास को क़त्ल करना अपना धर्म समझा। आपको मालूम है, वह एक राजनीतिक मुकदमे की पैरवी करने लाहौर गये थे। लेकिन मिस्टर व्यास ने जिस तरह अपनी ऊंची कानूनी लियाकत का इस्तेमाल किया, पुलिस को झूठी शहादतों के तैयार करने में जिस तरह मदद दी, जिस बेरहमी और बेदर्दी से बेकस और ज्यादा बेगुनाह नौजवानों को तबाह किया, उसे मैं सह न सकता था। उन दिनों अदालत में तमाशाइयों की बेइन्तहा भीड़ रहती थी। सभी अदालत से मिस्टर व्यास को कोसते हुए जाते थे मैं तो मुकदमे की हकीकत को जानता था। इसलिए मेरी अन्तरात्मा सिर्फ कोसने और गालियॉँ देने से शांत न हो सकती थी। मैं आपसे क्या कहूँ। मिस्टर व्यास ने आंख खोलकर समझ-बूझकर झूठ को सच साबित किया और कितने ही घरानों को बेचिराग कर दिया आज कितनी मांएं अपने बेटों के लिए खून के आंसू रो रही हैं, कितनी ही औरतें रंडापे की आग में जल रही हैं। पुलिस कितनी ही ज्यादतियां करे, हम परवाह नहीं करते। पुलिस से हम इसके सिवा और उम्मीद नहीं रखते। उसमें ज्यादातर जाहिल शोहदे लुच्चे भरे हुए हैं। सरकार ने इस महकमे को कायम ही इसलिए किया है कि वह रिआया को तंग करे। मगर वकीलों से हम इन्साफ की उम्मीद रखते हैं। हम उनकी इज्जत करते हैं। वे उच्चकोटि के पढ़े लिखे सजग लोग होते हैं। जब ऐसे आदमियों को हम पुलिस के हाथों की कठपुतली बना हुआ देखते हैं तो हमारे क्रोध की सीमा नहीं रहती, मैं मिस्टर व्यास का प्रशंसक था। मगर जब मैंने उन्हें बेगुनाह मुलजिमों से जबरन जुर्म का इकबाल कराते देखा तो मुझे उनसे नफरत हो गयी। गरीब मुलजिम रात दिन भर उल्टे लटकाये जाते थे! सिर्फ इसलिए कि वह अपना जुर्म, जो उन्होंने कभी नहीं किया, इकबाल कर लें! उनकी नाक में लाल मिर्च का धुआं डाला जाता था! मिस्टर व्यास यह सारी ज्यादातियां सिर्फ अपनी आंखों से देखते ही नहीं थे, बल्कि उन्हीं के इशारे पर वह की जाती थीं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book