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प्रेमचन्द की कहानियाँ 24

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9785
आईएसबीएन :9781613015223

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौबीसवाँ भाग


रात का वक्त। पंजाब मेल बड़ी तेजी से अंधेरे को चीरती हुई चली जा रही थी। माया एक सेकेण्ड क्लास के कमरे में बैठी सोच रही थी कि शाहजहाँपुर में कहां ठहरेगी, कैसे ईश्वरदास का मकान तलाशा करेगी और कैसे उससे खून का बदला लेगी। उसके बगल में तिलोत्तमा बेखबर सो रही थी। सामने ऊपर के बर्थ पर एक आदमी नींद में गाफ़िल पड़ा हुआ था। यकायक गाड़ी का कमरा खुला और दो आदमी कोट-पतलून पहने हुए कमरे में दाखिल हुए। दोनो अंग्रेज थे।

एक माया की तरफ बैठा और दूसरा दूसरी तरफ। माया सिमटकर बैठ गयी। इन आदमियों का यों बैठना उसे बहुत बुरा मालूम हुआ। वह कहना चाहती थी, आप लोग दूसरी तरफ बैठें, पर वही औरत जो खून का बदला लेने जा रही थी, सामने यह खतरा देखकर कांप उठी। वह दोनों शैतान उसे सिमटते देखकर और भी करीब आ गये। माया अब वहां न बैठी रह सकी। वह उठकर दूसरे वर्थ पर जाना चाहती थी कि उनमें से एक ने उसका हाथ पकड़ लिया। माया ने जोर से हाथ छुड़ाने की कोशिश करके कहा- तुम्हारी शामत तो नहीं आयी है, छोड़ दो मेरा हाथ, सुअर?

इस पर दूसरे आदमी ने उठकर माया को सीने से लिपटा लिया। और लड़खड़ाती हुई जबान से बोला- वेल हम तुमका बहुत-सा रुपया देगा।

माया ने उसे सारी ताकत से ढ़केलने की कोशिश करते हुए कहा- हट जा हरामजादे, वर्ना अभी तेरा सर तोड़ दूंगी। दूसरा आदमी भी उठ खड़ा हुआ और दोनों मिलकर माया को बर्थ पर लिटाने की कोशिश करने लगे।

यकायक यह खटपट सुनकर ऊपर के बर्थ पर सोया हुआ आदमी चौंका और उन बदमाशों की हरकत देखकर ऊपर से कूद पड़ा। दोनों गोरे उसे देखकर माया को छोड़ उसकी तरफ झपटे और उसे घूंसे मारने लगे। दोनों उस पर ताबड़तोड़ हमला कर रहे थे और वह हाथों से अपने को बचा रहा था। उसे वार करने का कोई मौका न मिलता था। यकायक उसने उचककर अपने बिस्तर में से एक छूरा निकाल लिया और आस्तीनें समेटकर बोला- तुम दोनों अगर अभी बाहर न चले गये तो मैं एक को भी जीता ना छोड़ूँगा।

दोनों गोरे छुरा देखकर डरे मगर वह भी निहत्थे न थे। एक ने जेब से रिवाल्वर निकाल लिया और उसकी नली उस आदमी की तरफ करके बोला- निकल जाओ, रैस्कल!

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