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प्रेमचन्द की कहानियाँ 24

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9785
आईएसबीएन :9781613015223

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौबीसवाँ भाग


जब विवाह-संस्कार समाप्त हो गया और वर-वधू मंडप से निकले तो मैंने जल्दी से आगे बढ़कर उसी थाल से थोड़े-से फूल चुन लिए और एक अर्द्ध-चेतना की दशा में, न जाने किन भावों से प्रेरित होकर, उन फूलों को वधू के चरणों पर रख दिया, और उसी वक्त वहां से घर चल दिया।

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5. प्रतिज्ञा

देश में घोर अकाल पड़ा हुआ था। साल-भर से पानी की बूँद भी नहीं पड़ी थी। खेतों में धूल उड़ती थी। घास तक जल गई थी, न कहीं अन्न था और न जल। लोग वृक्षों की छालें कूट-कूटकर खाते थे। अर्धरात्रि दोपहर के समान तप्त रहती थी और दोपहर को भूमि से अग्नि की ज्वाला निकलती थी। समस्त देश में हाहाकार मचा हुआ था। लोगों के हृदय शुष्क हो गए थे। कोई किसी की सुधि लेने वाला न था। सब-के-सब अपनी-अपनी विपत्ति में बावले हो रहे थे। इंद्र की आराधना नित्य होती थी। लोग देव-स्थानों में जमा हो होकर रोते और विलाप करते थे, पर कदाचित् देवताओं में दया-वात्सल्य का लोप हो गया था; न पूजा-पाठ ही से कोई उपकार होता था, न यश तथा बलि से। ज्योतिषियों के द्वारों पर सदा भीड़ लगी रहती थी।

एक वैज्ञानिक महाशय ने वैज्ञानिक साधनों से मेघों को आकर्षित करने का उद्योग किया; पर सारे प्रयत्न निष्फल हुए। इंद्रदेव न पसीजे, पानी न बरसा और प्रजा की अवस्था प्रति क्षण बिगड़ती गई।

अंत में एक दिन लाखों हिंदू प्रजा एकत्र होकर देश के बड़े महात्मा बाबा दुर्लभदास की सेवा में पहुँची और उनके द्वार पर, गले पड़ जाने वालों की तरह, जा बैठी। मुसलमान प्रजा ने मौलाना शेख आबिदअली का दामन पकड़ा। दोनों महात्माओं के हृदयों में दया उत्पन्न हुई। बाबा दुर्लभदास ने समस्त देश के साधु-संतों को निमंत्रित किया। औलिया आबिदअली ने मुल्लाओं तथा पीरों के पास क़ासिद रवाना किए। एक सप्ताह में चारों दिशाओं से साधुगण तथा मुल्ला लोग आकर जमा हो गए। भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों के सहस्रों प्रतिभाशाली सत्-पुरुषों ने पदार्पण किया। मुल्लाओं के झुंड-के-झुंड विराजमान हुए। धर्मज्ञ, ईश्वर-भक्त और सिद्ध पुरुषों का ऐसा विलक्षण समागम कभी देखने में नहीं आया था। इनमें का प्रत्येक महात्मा अपने-अपने चमत्कारों तथा अलौकिक कृत्यों के लिए प्रसिद्ध था। लोगों को विश्वास था कि इनमें से यदि एक भी सिद्ध पुरुष मन से इच्छा करेगा, तो इंद्र की शक्ति नहीं कि उस सिद्ध की आज्ञा भंग हो सके।

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