| कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 23 प्रेमचन्द की कहानियाँ 23प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग
तांगे- हुजूर पुलिस बड़ा अंधेर करती है। जब देखो बेगार कभी आधी रात को बुला भेजा, कभी फजिर को। मरे जाते हैं हुजूर। उस पर हर मोड़ पर सिपाहियों को पैसे चाहिए। न दें, तो झूठा चालान कर दें। 
गुल- सब जानता हूं जी, अपनी झोपड़ी में बैठा सारी दुनिया की सैर किया करता हूं। वहीं बैठे-बैठे बदमाशों की खबर लिया करता हूं। देखो, तांगे को बंगले के भीतर न ले जाना। बाहर फाटक पर रोक देना। 
तांगे- अच्छा हुजूर। अच्छा, अब देखिये वह सिपाही मोड़ पर खड़ा है। पैसे के लिए हाथ फैलायेगा। न दूं तो ललकारेगा। मगर आज कसम कुरान की, टका-सा जवाब दे दूंगा। हुजूर बैठे हैं तो क्या कर सकता है। 
गुल- नहीं, नहीं, जरा-जरा सी बात पर मैं इन छोटे आदमियों से नहीं लड़ता। पैसे दे देना। मैं तो पीछे से बच्चा की खबर लूंगा। मुअत्तल न करा दूं तो सही। दूबदू गाली-गलौज करना, इन छोटे आदमियों के मुंह लगना मेरी आदत नहीं। 
तांगेवाले को भी यह बात पसन्द आई। मोड़ पर उसने सिपाही को पैसे दे दिए। तांगा साहब के बंगले पर पहुचां। खां साहब उतरे, और जिस तरह कोई शिकारी पैर दबा-दबाकर चौकन्नी आंखों से देखता हुआ चलता है, उसी तरह आप बंगले के बरामदे में जाकर खड़े हो गए। बैरा बरामदे में बैठा था। आपने उसे देखते ही सलाम किया।
बैरा- हुजूर तो अंधेर करते हैं। सलाम हमको करना चाहिए और आप पहले ही हाथ उठा देते हैं। 
गुल- अजी इन बातों में क्या रक्खा है। खुदा की निगाह में सब इन्सान बराबर हैं।
बैरा- हुजूर को अल्लाह सलामत रक्खें, क्या बात कही है। हक तो यह है पर आदमी अपने को कितना भूल जाता है! यहां तो छोटे-छोटे अमले भी इंतजार करते रहते हैं कि यह हाथ उठावें। साहब को इत्तला कर दूं? 
गुल- आराम में हों तो रहने दो, अभी ऐसी कोई जल्दी नहीं। 
बैरा- जी नहीं हुजूर हाजिरी पर से तो कभी के उठ चुके, कागज-वागज पढते होंगे।
गुल- अब इसका तुम्हें अख्तियार है, जैसा मौका हो वैसा करो। मौका-महल पहचानना तुम्हीं लोगों का काम है। क्या हुआ, तुम्हारी लड़की तो खैरियत से है न? 
			
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