कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 23 प्रेमचन्द की कहानियाँ 23प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग
यही बातें हो रही थीं कि दुर्गा माली एक डाली नारंगियाँ, गोभी के फूल, अमरूद, मटर की फलियाँ आदि सजा कर लाया और उसे डॉक्टर साहब के सामने रख दिया। उसके चेहरे पर एक प्रकार का गर्व था, मानों उसकी आत्मा जागरित हो गई है। वह डॉक्टर साहब के समीप एक मोटे मोढ़े पर बैठ गया और बोला- हुजूर कैसी कलमें चाहिए? आप बाबू जी को एक चिट पर उनके नाम लिख कर दे दीजिए। मैं कल आपके मकान पहुँचा दूँगा। आपके बाल-बच्चे तो अच्छी तरह हैं।
डॉक्टर साहब ने कुछ सकुचा कर कहा– हाँ, लड़के अच्छी तरह हैं तुम यहाँ अच्छी तरह हो?
दुर्गा– जी हाँ, आपकी दया से बहुत आराम से हूँ।
डॉक्टर साहब उठ कर चले तो प्रेमशंकर उन्हें विदा करने साथ-साथ फाटक तक आये। डॉक्टर मोटर पर बैठे तो मुस्करा कर प्रेमशंकर से बोले– मैं आपके सिद्धांतों का कायल नहीं हुआ, पर इसमें सन्देह नहीं कि आपने एक पशु को मनुष्य बना दिया। यह आपके सत्संग का फल है। लेकिन क्षमा कीजिएगा, मैं फिर भी कहूँगा कि आप इससे होशियार रहियेगा। ‘यूजेनिक्स' (सुप्रजनन-शास्त्र) अभी तक किसी ऐसे प्रयोग का आविष्कार नहीं कर सका है, जो जन्म के संस्कारों को मिटा दे !
5. पागल हाथी
मोती राजा साहब की खास सवारी का हाथी। यों तो वह बहुत सीधा और समझदार था, पर कभी-कभी उसका मिजाज गर्म हो जाता था और वह आपे में न रहता था। उस हालत में उसे किसी बात की सुधि न रहती थी, महावत का दबाव भी न मानता था। एक बार इसी पागलपन में उसने अपने महावत को मार डाला। राजा साहब ने वह खबर सुनी तो उन्हें बहुत क्रोध आया। मोती की पदवी छिन गयी। राजा साहब की सवारी से निकाल दिया गया। कुलियों की तरह उसे लकड़ियां ढोनी पड़तीं, पत्थर लादने पड़ते और शाम को वह पीपल के नीचे मोटी जंजीरों से बांध दिया जाता। रातिब बंद हो गया। उसके सामने सूखी टहनियां डाल दी जाती थीं और उन्हीं को चबाकर वह भूख की आग बुझाता। जब वह अपनी इस दशा को अपनी पहली दशा से मिलाता तो वह बहुत चंचल हो जाता। वह सोचता, कहां मैं राजा का सबसे प्यारा हाथी था और कहां आज मामूली मजदूर हूं। यह सोचकर जोर-जोर से चिंघाड़ता और उछलता। आखिर एक दिन उसे इतना जोश आया कि उसने लोहे की जंजीरें तोड़ डालीं और जंगल की तरफ भागा।
थोड़ी ही दूर पर एक नदी थी। मोती पहले उस नदी में जाकर खूब नहाया। तब वहां से जंगल की ओर चला। इधर राजा साहब के आदमी उसे पकड़ने के लिए दौड़े, मगर मारे डर के कोई उसके पास जा न सका। जंगल का जानवर जंगल ही में चला गया।
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