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प्रेमचन्द की कहानियाँ 23

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :137
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9784
आईएसबीएन :9781613015216

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग


माली बाजार गया हुआ था। डॉ० साहब ने साईस से कुछ आम तुड़वाये, मित्रों ने आम खाये, दूध पिया और डाक्टर साहब को धन्यवाद दे कर अपने-अपने घर की राह ली। लेकिन  मिस्टर  मेहरा वहाँ हौज के किनारे हाथ में हंटर लिए माली की बाट जोहते रहे। आकृति से जान पड़ता था मानो साक्षात् क्रोध मूर्तिमान हो गया था।

कुछ रात गये दुर्गा बाजार से लौटा। वह चौकन्नी आँखों से इधर-उधर देख रहा था। ज्यों ही उसने  डॉक्टर साहब को हौज के किनारे हाथ में हंटर लिये बैठे देख, उसके होश उड़ गये। समझ गया कि चोरी पकड़ ली गयी। इसी भय से उसने बाजार में खूब देर  की थी। उसने समझा था, डाक्टर साहब कहीं सैर करने गये होंगे, मैं चुपके कटहल के नीचे झोपड़ी में जा बैठूँगा, सबरे कुछ पूछताछ भी हुई तो मुझे सफाई देने का अवसर मिल जायगा। कह दूँगा, सरकार, मेरे झोपड़े की तलाशी ले लें, इस प्रकार मामला दब जायगा। समय सफल चोर का सबसे बड़ा मित्र है। एक-एक क्षण उसे निर्दोष सिद्ध करता जाता है। किन्तु जब वह रँगे हाथों पकड़ा जाता है तब उसे   बच निकलने की कोई राह नहीं रहती। रुधिर के सूखे हुए धब्बे रंग के दाग बन सकते हैं, पर ताजा लोहू आप ही आप पुकारता है। दुर्गा के पैर थम गये, छाती धड़कने लगी। डॉक्टर साहब की निगाह उस पर पड़ गयी थी। अब उल्टे पाँव लौटना व्यर्थ था।

डॉक्टर साहब उसे दूर से देखते ही उठे कि चल कर उसकी खूब मरम्मत करूँ। लेकिन वकील थे, विचार किया कि इसका बयान लेना आवश्यक है। इशारे से निकट बुलाया और पूछा– सुफेदे के पेड़ में कई आम लगे हुए थे। एक भी नहीं दिखायी देता। क्या हो गये?

दुर्गा ने निर्दोष भाव से उत्तर दिया– हुजूर, अभी मैं बाजार गया हूँ, तब तक तो सब आम लगे हुए थे। इतनी देर में कोई तोड़ ले गया हो तो मैं नहीं कह सकता।

डॉक्टर– तुम्हारा किस पर संदेह है?

दुर्गा– सरकार, अब मैं किसे बताऊँ! इतने नौकर-चाकर  हैं, न जाने किसकी नियत बिगड़ी हो।

डॉक्टर– मेरा संदेह तुम्हारे ऊपर है, अगर तोड़ कर रखे हों तो ला कर दे दो या साफ साफ कह दो कि मैंने तोड़े  हैं, नहीं तो मैं बुरी तरह पेश आऊगा।

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