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			 कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 23 प्रेमचन्द की कहानियाँ 23प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग
व्यास- धर्मावतार, कुछ कहते नहीं बनता। बड़ी हीन दशा है। 
कुंअर- नैनीताल जाने को तैयार था। अब बड़ी साली कहती है कि मेरे बच्चे का मुंडन है, मैं न जाने दूंगी। चले जाओगे तो मुझे रंज होगा। बतलाइए, अब क्या करूं। ऐसी मूर्खता और कहां देखने में आएगी। पूछो मुंडन नाई करेगा, नाच-तमाशा देखने वालों की शहर में कमी नहीं, एक मैं न हूंगा न सही, मगर उनको कौन समझाये। 
व्यास- दीनबन्धु, नारी-हठ तो लोक प्रसिद्ध ही है। 
कुंअर- अब यह सोचिए कि छोटे साहब से क्या बहाना किया जायगा। 
वाजिद- बड़ा नाजुक मुआमला आ पड़ा हुजूर। 
लाला- हाकिम का नाराज हो जाना बुरा है। 
वाजिद- हाकिम मिट्टी का भी हो, फिर भी हाकिम ही है। 
कुंअर- मैं तो बड़ी मुसीबत में फंस गया। 
लाला- हुजूर, अब बाहर न बैठें। मेरी तो यही सलाह है। जो कुछ सिर पर पड़ेगी, हम ओढ़ लेंगे। 
वाजिद- अजी, पसीने की जगह खून गिरा देंगे। नमक खाया है कि दिल्लगी है।
लाला- हां, मुझे भी यही मुनासिब मालूम होता है। आप लोग कह दीजिए, बीमार हो गए है। 
अभी यही बातें हो रही थी कि खिदमतगार ने आकर हांफते हुए कहा- सरकार, कोऊ आया है, तौन सरकार का बुलावत है। 
कुंअर- कौन है पूछा नहीं? 
खिद.- कोऊ रंगरेज है सरकार, लालो-लाल मुंह है, घोड़ा पर सवार है। 
			
						
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