| कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 22 प्रेमचन्द की कहानियाँ 22प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बाइसवाँ भाग
सास- अभागिनी है और क्या? 
घमंडीलाल- ऐसी कौन-सी बड़ी बातें थीं, जो याद न रहीं? वह खुद हम लोगों को जलाना चाहती है। 
सास- वही तो कहूँ कि महात्मा की बात कैसे निष्फल हुई। यहाँ सात बरसों तक 'तुलसी माई' को दिया चढ़ाया, जब जा के बच्चे का जन्म हुआ। 
घमंडीलाल- इन्होंने समझा था दाल-भात का कौर है! 
सुकेशी- खैर, अब जो हुआ, सो हुआ कल मंगल है, फिर व्रत रखो और अबकी सात ब्राह्मणों को जिमाओ। देखें, कैसे महात्माजी की बात नहीं पूरी होती। 
घमंडीलाल- व्यर्थ है, इनके किये कुछ न होगा। 
सुकेशी- बाबूजी, आप विद्वान् समझदार होकर इतना दिल छोटा करते हैं। अभी आपकी उम्र ही क्या है। कितने पुत्र लीजिएगा? नाकों दम न हो जाय तो कहिएगा। 
सास- बेटी, दूध-पूत से भी किसी का मन भरा है? 
सुकेशी- ईश्वर ने चाहा तो आप लोगों का मन भर जायगा। मेरा तो भर गया। 
घमंडीलाल- सुनती हो महारानी, अबकी कोई गोलमाल मत करना। अपनी भाभी से सब ब्योरा अच्छी तरह पूछ लेना। 
सुकेशी- आप निश्चिंत रहें, मैं याद करा दूँगी; क्या भोजन करना होगा, कैसे रहना होगा, कैसे स्नान करना होगा, यह सब लिखा दूँगी और अम्माँजी, आज के अठारह मास बाद आपसे कोई भारी इनाम लूँगी। 
सुकेशी एक सप्ताह यहाँ रही और निरुपमा को खूब लिखा-पढ़ाकर चली गयी। 
निरुपमा का इकबाल फिर चमका, घमंडीलाल अबकी इतने आश्वासित हुए कि भविष्य ने भूत को भुला दिया। निरुपमा फिर बाँदी से रानी हुई, सास फिर उसे पान की भाँति फेरने लगी, लोग उसका मुँह जोहने लगे। 
			
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