कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 22 प्रेमचन्द की कहानियाँ 22प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बाइसवाँ भाग
‘धन की इच्छा किसे न होगी; लेकिन इस वक्त मैं इस हेतु से आपकी सेवा में नहीं आया था।’
‘तो कहो न? पौष्टिक अनुष्ठानों की भी मेरे पास कमी नहीं। चूर्ण, अवलेह, गोली, भस्म, आसव, क्वाथ, किसी चीज के सेवन करने की आवश्यकता नहीं, बस पाँच बार उस मन्त्र की जप करके सो जाइए, फिर उसकी करामात देखिए।’
‘मैं इस समय एक दूसरे ही काम से सेवा में आया था।’
मुझे कुछ निराशा होने लगी। हत्थे पर चढऩे वाला नहीं जान पड़ता। फिर भी मैंने दिलासा दिया- जो इच्छा हो वह निस्संकोच कहो।
उसने पूछा- आप उसमें अपना अपमान तो न समझेंगे?
अब मेरे कान खड़े हुए, उत्सुकता और बढ़ी।
‘अपमान की बात होगी, तो अवश्य अपमान समझूँगा।’
‘बात यह है कि कल सन्ध्या समय मेरे माता-पिता देश से आ गये हैं।’
‘बहुत अच्छी बात है तुम्हें उनका आदर-सत्कार करना चाहिए।’
‘लेकिन करूँ कैसे यह समझ में नहीं आता। कल से उन्होंने भोजन नहीं किया!’
‘भोजन नहीं किया! यह तो बड़ा अनर्थ है। कुछ उदर विकार हो गया है। मैं आयुर्वेद भी जानता हूँ।’
‘नहीं-नहीं शास्त्रीजी, वह तो आपसे भी भारी डीलडौल के हैं।’
‘भारी डीलडौल के लोग क्या बीमार नहीं पड़ते?’
‘पड़ते होंगे; पर फादर कभी बीमार नहीं पड़ते और मदर के सिर में तो कभी दर्द भी नहीं हुआ।’
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