लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 22

प्रेमचन्द की कहानियाँ 22

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9783
आईएसबीएन :9781613015209

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

54 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बाइसवाँ भाग


डॉ० साहब जोर से हँसे। बोले- तुम काशी का विद्वान लोग बड़ा मजाक करता है। काशी के एक पण्डित को दक्षना देने से सब पण्डित तो नहीं परसन हो जाएगा। बोले?

हमने कलेजा थामकर पूछा- तो उनकी क्या फीस होगी?

‘उसका फीस केवल 10 रुपया है।’

मैंने मन से कहा- चलो मन यह 10 रुपया भी गम खाओ। बम्बई में जो कमाना है, वह सब देकर भी प्राण बचे तो समझना चाहिए, नया जीवन पाया। नहीं यहीं बैठे-बैठे टें हो जाएँगे, कोई रोने वाला भी न मिलेगा। उस वक्त ऐसा वैराग्य सवार हुआ कि सब छोड़-छाडक़र निकल भागूँ, कबीर का वह पद याद आया जिसे पढक़र मैं कभी-कभी हँसा करता था। धूर्तताई में जीवन कट गया। अब इस काया की क्या दुरदसा होगी भगवान-

दिवाने मन भजन बिन दुख पैहो।
पहिला जनम भूत का पैहो, सात जनम पछतैहो;
कीरा पर के पानी पैहो, प्यासन ही मरि जैहो।
दूजा जनम सुवा का पैहो, बाग बसेरा लैहो;
टूटे पंख बाज मँडराने अधफड़ प्रान गँवैहो।
बाजीगर के बानर होइहौ, लकडिऩ नाच नचैहो;
ऊँच-नीच के हाथ पसरिहौ, माँगे भीख न पैहो।
तेलिन के घर बैला होइहौ, आँखिन ढाँप ढैपैहो;
कोस पचास घरै माँ चलिहो, बाहर होन न पैहो।
पाँचवाँ जनम ऊँट का पैहो, बिन तोले बोझ लदैहो;
बैठे तो उठन न पैहो, घुरच-घुरच मरि जैहो।
धोबी घाट के गदहा होइहौ, कटी घास न पैहो,
लादी लादि आपु चढ़ बैठे, लैके घाट पहुँचैहो।


आखिर यही कहना पड़ा कि हाँ सेठजी के पास बिल भेज देना। फिर वहाँ का पता पूछता हुआ डाक्टर सूबेदार के पास पहुँचा। कोई दस बज गये थे, पेट में मीठा-मीठा दर्द होने लगा था; लेकिन सोचा इस झमेले से निबट लो, फिर विश्वनाथजी की जैसी इच्छा होगी, वह तो होगा ही।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book