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प्रेमचन्द की कहानियाँ 21

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :157
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9782
आईएसबीएन :9781613015193

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इक्कीसवाँ भाग


नयी वधू का श्रृंगार हो रहा था। भीतर-बाहर हलचल मची हुई थी, ऐसा जान पड़ता था भगदड़ पड़ी हुई है। तिलोत्तमा के हृदय में वियोग दु:ख की तरंगें उठ रही हैं। वह एकांत में बैठकर रोना चाहती है। आज माता-पिता, भाईबंद, सखियाँ-सहेलियाँ सब छूट जायेंगी। फिर मालूम नहीं कब मिलने का संयोग हो। न जाने अब कैसे आदमियों से पाला पड़ेगा। न जाने उनका स्वभाव कैसा होगा। न जाने कैसा बर्ताव करेंगे। अम्माँ की आँखें एक क्षण भी न थमेंगी। मैं एक दिन के लिए कहीं चली जाती थी तो वे रो-रोकर व्यथित हो जाती थीं। अब यह जीवनपर्यन्त का वियोग कैसे सहेंगी? उनके सिर में दर्द होता था जब तक मैं धीरे-धीरे न मलूँ, उन्हें किसी तरह कल-चैन ही न पड़ती थी। बाबूजी को पान बनाकर कौन देगा? मैं जब तक उनका भोजन न बनाऊँ, उन्हें कोई चीज रुचती ही न थी? अब उनका भोजन कौन बनायेगा? मुझसे इनको देखे बिना कैसे रहा जायगा? यहाँ जरा सिर में दर्द भी होता था तो अम्माँ और बाबूजी घबरा जाते थे। तुरंत बैद-हकीम आ जाते थे। वहाँ न जाने क्या हाल होगा। भगवान् बंद घर में कैसे रहा जायगा? न जाने वहाँ खुली छत है या नहीं। होगी भी तो मुझे कौन सोने देगा? भीतर घुट-घुट कर मरुँगी। जगने में जरा देर हो जायगी तो ताने मिलेंगे। यहाँ सुबह को कोई जगाता था, तो अम्मॉँ कहती थीं, सोने दो। कच्ची नींद जाग जायगी तो सिर में पीड़ा होने लगेगी। वहाँ व्यंग सुनने पड़ेंगे, बहू आलसी है, दिन भर खाट पर पड़ी रहती है। वे (पति) तो बहुत सुशील मालूम होते हैं। हाँ, कुछ अभिमान अवश्य हैं। कहीं उनका स्वभाव निठुर हुआ तो............?

सहसा उनकी माता ने आकर कहा- बेटी, तुमसे एक बात कहने की याद न रही। वहाँ नाग-पूजा अवश्य करती रहना। घर के और लोग चाहे मना करें; पर तुम इसे अपना कर्तव्य समझना। अभी मेरी आँखें जरा-जरा झपक गयी थीं। नाग बाबा ने स्वप्न में दर्शन दिये।

तिलोत्तमा- अम्मॉँ, मुझे भी उनके दर्शन हुए हैं, पर मुझे तो उन्होंले बड़ा विकाल रूप दिखाया। बड़ा भंयंकर स्वप्न था।

माँ- देखना, तुम्हारे घर में कोई सॉँप न मारने पाये। यह मंत्र नित्य पास रखना।

तिलोत्तमा अभी कुछ जवाब न देने पायी थी कि अचानक बारात की ओर से रोने के शब्द सुनायी दिये, एक क्षण में हाहाकर मच गया। भंयकर शोक-घटना हो गयी। वर को साँप ने काट लिया। वह बहू को बिदा कराने आ रहा था। पालकी में मसनद के नीचे एक काला साँप छिपा हुआ था। वर ज्यों ही पालकी में बैठा, साँप ने काट लिया।

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