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प्रेमचन्द की कहानियाँ 21

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :157
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9782
आईएसबीएन :9781613015193

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इक्कीसवाँ भाग


एक दिन उसने एकान्त में बाबाजी से अपनी विपत्ति कह सुनायी। नेउर को जिस शिकार की टोह थी वह आज मिलता हुआ जान पड़ा। गंभीर भाव से बोला- बेटी मैं न सिद्ध हूं न महात्मा, न मैं संसार के झमेलों में पड़ता हूं पर तेरी सरधा और परेम देखकर तुझ पर दया आती है। भगवान ने चाहा तो तेरा मनोरथ पूरा हो जायेगा।

'आप समर्थ हैं और मुझे आपके ऊपर विश्वास है।'

'भगवान की जो इच्छा होगी वही होगा।'

'इस अभागिनी की डोंगी आप हैं, जो चाहेंगे वही होगा।'

'मेरे भगवान आप ही हो।'

नेउर ने मानो धर्म-संकट में पड़कर कहा- लेकिन बेटी, उस काम में बड़ा अनुष्ठान करना पडेगा और अनुष्ठान में सैकड़ों हजारों का खर्च है। उस पर भी तेरा काज सिद्ध होगा या नही, यह मैं नहीं कह सकता। हां मुझसे जो कुछ हो सकेगा, वह मैं कर दूंगा। पर सब कुछ भगवान के हाथ में है। मैं माया को हाथ से नहीं छूता; लेकिन तेरा दुख नहीं देखा जाता।

उसी रात को युवती ने अपने सोने के गहनों की पेटारी लाकर बाबाजी के चरणों पर रख दी बाबाजी ने कांपते हुए हाथों से पेटारी खोली और चन्द्रमा के उज्जवल प्रकाश में आभूषणों को देखा। उनकी आँखें झपक गयीं, यह सारी माया उनकी है वह उनके सामने हाथ बांधे खड़ी कह रही है मुझे अंगीकार कीजिए कुछ भी तो करना नहीं है केवल पेटारी लेकर अपने सिरहाने रख लेना है और युवती को आशीर्वाद देकर विदा कर देना है। प्रातःकाल वह आयेगी उस वक्त वह उतना दूर होंगे जहां उनकी टांगे ले जायेंगी। ऐसा आशातीत सौभाग्य! जब वह रुपये से भरी थैलियां लिए गांव में पहुंचेंगे और बुढ़िया के सामने रख देंगे! ओह! इससे बड़े आनन्द की तो वह कल्पना भी नहीं कर सकते।

लेकिन न जाने क्यों इतना जरा सा काम भी उससे नहीं हो सकता था। वह पेटारी को उठाकर अपने सिरहाने कंबल के नीचे दबाकर नहीं रख सकता। है कुछ नहीं; पर उसके लिए असूझ है, असाध्य है वह उस पेटारी की ओर हाथ भी नहीं बढा सकता है इतना कहने में कौन सी दुनिया उलटी जाती है कि बेटी इसे उठाकर इस कम्बल के नीचे रख दे। जबान कट तो न जायगी, मगर अब उसे मालूम होता कि जबान पर भी उसका काबू नहीं है। आंखों के इशारे से भी यह काम हो सकता है। लेकिन इस समय आंखें भी बगावत कर रही हैं। मन का राजा इतने मत्रियों और सामन्तों के होते हुए भी अशक्त है निरीह है लाख रुपये की थैली सामने रखी हो नंगी तलवार हाथ में हो गाय मजबूत रस्सी के सामने बंधी हो, क्या उस गाय की गरदन पर उसके हाथ उठेगें। कभी नहीं कोई उसकी गरदन भले ही काट ले। वह गऊ की हत्या नहीं कर सकता। वह परित्यक्ता उसे उसी गऊ की तरह लग रही थी।

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