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प्रेमचन्द की कहानियाँ 21

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :157
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9782
आईएसबीएन :9781613015193

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इक्कीसवाँ भाग


नेउर घर चला, तो ऐसा प्रसन्न था मानो ईश्वर का हाथ उसके सिर पर है। रात-भर उसे नींद नहीं आयी। सबेरे उसने कई आदमियों से दो-दो चार चार रुपये उधार लेकर पचास रुपये जोडे! लोग उसका विश्वास करते थे। कभी किसी का पैसा भी न दबाता था। वादे का पक्का नीयत का साफ। रुपये मिलने में दिक्कत न हुई। पचीस रुपये उसके पास थे। बुढ़िया से गहने कैसे ले, चाल चली। तेरे गहने बहुत मैले हो गये हैं। खटाई से साफ कर ले। रात भर खटाई में रहने से नए हो जायेंगे। बुढ़िया चकमे में आ गयी। हांड़ी में खटाई डालकर गहने भिगो दिए और जब रात को वह सो गयी तो नेउर ने रुपये भी उसी हांडी में डाल दिए और बाबाजी के पास पहुंचा। बाबाजी ने कुछ मन्त्र पढ़ा। हांड़ी को धूनी की राख में रखा और नेउर को आशीर्वाद देकर विदा किया।

रात भर करबटें बदलने के बाद नेउर मुंह अंधेरे बाबा के दर्शन करने गया। मगर बाबाजी का वहां पता न था। अधीर होकर उसने धूनी की जलती हुई राख टटोली । हांड़ी गायब थी। छाती धक-धक करने लगी। बदहवास होकर बाबा को खोजने लगा। हाट की तरफ गया। तालाब की ओर पहुंचा। दस मिनट, बीस मिनट, आधा घंटा! बाबा का कहीं निशान नहीं। भक्त आने लगे। बाबा कहां गए? कम्बल भी नहीं बरतन भी नहीं!

भक्त ने कहा- रमते साधुओं का क्या ठिकाना! आज यहां कल वहां, एक जगह रहे तो साधु कैसे? लोगों से हेल-मेल हो जाए, बन्धन में पड़ जायें।

'सिद्ध थे।'

'लोभ तो छू नहीं गया था।'

नेउर कहां है? उस पर बड़ी दया करते थे। उससे कह गये होंगे।'

नेउर की तलाश होने लगी, कहीं पता नहीं। इतने में बुढ़िया नेउर को पुकारती हुई घर में से निकली। फिर कोलाहल मच गया। बुढ़िया रोती थी और नेउर को गालियां देती थी।

नेउर खेतों की मेड़ों से बेतहाशा भागता चला जाता था। मानो उस पापी संसार इस निकल जाएगा।

एक आदमी ने कहा- नेउर ने कल मुझसे पांच रुपये लिये थे। आज सांझ को देने को कहा था।

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