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प्रेमचन्द की कहानियाँ 21

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :157
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9782
आईएसबीएन :9781613015193

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इक्कीसवाँ भाग


मर्यादा-- जानते हो इसका परिणाम क्या होगा?

परशुराम: जानता भी हूं और नहीं भी जानता।

मर्यादा: मुझे वासुदेव ले जाने दोगे?

परशुराम: वासुदेव मेरा पुत्र है।

मर्यादा: उसे एक बार प्यार कर लेने दोगे?

परशुराम: अपनी इच्छा से नहीं, तुम्हारी इच्छा हो तो दूर से देख सकती हो।

मर्यादा: तो जाने दो, न देखूंगी। समझ लूंगी कि विधवा हूं और बांझ भी। चलो मन, अब इस घर में तुम्हारा निबाह नहीं है। चलो जहां भाग्य ले जाय।

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6. नेउर

आकाश में चांदी के पहाड़ भाग रहे थे, टकरा रहे थे गले मिल रहे थे, जैसे सूर्य मेघ संग्राम छिड़ा हुआ हो। कभी छाया हो जाती थी कभी तेज धूप चमक उठती थी। बरसात के दिन थे। उमस हो रही थी । हवा बंद हो गयी थी।

गांव के बाहर कई मजूर एक खेत की मेड़ बांध रहे, थे। नंगे बदन पसीने में तर कछनी कसे हुए, सब के सब फावड़े से मिट्टी खोदकर मेड़ पर रखते जाते थे। पानी से मिट्टी नरम हो गयी थी।

गोबर ने अपनी कानी आंख मटकाकर कहा- अब तो हाथ नहीं चलता भाई गोल भी छूट गया होगा, चबेना कर ले।

नेउर ने हंसकर कहा- यह मेड़ तो पूरी कर लो फिर चबेना कर लेना मैं तो तुमसे पहले आया।

दोनों ने सिर पर झौवा उठाते हुए कहा- तुमने अपनी जवानी में जितना घी खाया होगा नेउर दादा उतना तो अब हमें पानी भी नहीं मिलता। नेउर छोटे डील का गठीला काला, फुर्तीला आदमी,था। उम्र पचास से ऊपर थी, मगर अच्छे अच्छे नौजवान उसके बराबर मेहनत न कर सकते थे अभी दो तीन साल पहले तक कुश्ती लड़ना छोड दिया था।

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