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प्रेमचन्द की कहानियाँ 20

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :154
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9781
आईएसबीएन :9781613015186

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बीसवाँ भाग


इसके बाद तीसरा भाग आया। यह प्रतिभाशाली कवियों की सभा थी। सर्वोच्च स्थान पर आदिकवि वाल्मीक और महर्षि वेदव्यास सुशोभित थे। दाहिनी ओर मृंगार रस के अद्वितीय कवि कालिदास थे, बाएँ तरफ़ गंभीर भावों से पूर्ण भवभूति। निकट ही भर्तृहरि अपने संतोषाश्रम में बैठे हुए थे।

दक्षिण की दीवार पर राष्ट्रभाषा हिंदी के कवियों का सम्मेलन था। सहृदय कवि सूर, तेजस्वी तुलसी, सुकवि केशव और रसिक बिहारी यथा-क्रम विराजमान थे। सूरदास से प्रभा को अगाध प्रेम था। वह समीप जाकर उनके चरणों पर मस्तक रखना ही चाहती थी कि अकस्मात् उन्हीं चरणों के सम्मुख सिर झुकाए उसे एक छोटा-सा चित्र देख पड़ा। प्रभा उसे देखकर चौंक पड़ी। यह वही चित्र था, जो उसके हृदयपट पर खिंचा हुआ था। वह खुलकर उसकी तरफ़ ताक न सकी। दबी हुई आँखों से देखने लगी। राजा हरिश्चंद्र ने मुस्कराकर पूछा- ''इस व्यक्ति को तुमने कहीं देखा है?'' इस प्रश्न से प्रभा का हृदय काँप उठा। जिस तरह मृग-शावक व्याध के सामने व्याकुल हो इधर-उधर देखता है उसी तरह प्रभा अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से दीवार की ओर ताकने लगी। सोचने लगी-क्या उत्तर दूँ। इसको कहीं देखा है, उन्होंने यह प्रश्न मुझसे क्यों किया। कहीं ताड़ तो नहीं गए। हे नारायण, मेरी पत तुम्हारे हाथ है। इंकार करूँ। मुँह पीला हो गया। सिर झुका, क्षीण स्वर से बोली-

''हाँ, ध्यान आता है कि कहीं देखा है।''

हरिश्चंद्र ने कहा- ''कहाँ देखा?''

प्रभा के सिर में चक्कर-सा आने लगा। बोली- ''शायद एक बार यह गाता हुआ मेरी वाटिका के सामने से जा रहा था। उमा ने बुलाकर इसका गाना सुना था।’’

हरिश्चंद्र ने पूछा- ''कैसा गाना था?''

प्रभा के होश उड़े हुए थे। सोचती थी- राजा के इन सवालों में जरूर कोई बात है। देखूँ आज लाज रहती है या नहीं। बोली- ''उसका गाना ऐसा बुरा न था।’’

हरिश्चंद्र ने मुस्कराकर पूछा- ''क्या गाया था?''

प्रभा ने सोचा- इस प्रश्न का उत्तर दे दूँ तो बाकी क्या रहता है। उसे विश्वास हो गया कि आज कुशल नहीं है। वह छत की ओर निरखती हुई बोली- ''सूरदास का कोई पद था।'

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