कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 20 प्रेमचन्द की कहानियाँ 20प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बीसवाँ भाग
जुगल आँखों में आँसू भर-कर कहता बहूजी, 'अभी मेरी उम्र ही क्या है? सत्रहवाँ ही तो पूरा हुआ है !'
आशा को उसकी बात पर हँसी आ गयी। उसने कहा, 'तो रोटियाँ पकाना क्या दस-पाँच साल में आता है?
'आप एक महीना सिखा दें बहूजी, फिर देखिए, मैं आपको कैसे फुलके खिलाता हूँ कि जी खुश हो जाय। जिस दिन मुझे फुलके बनाने आ जायँगे, मैं आपसे कोई इनाम लूँगा। सालन तो अब मैं कुछ-कुछ बनाने लगा हूँ, क्यों?'
आशा ने हौसला बढ़ाने वाली मुस्कराहट के साथ कहा, 'सालन नहीं, वो बनाना आता है। अभी कल ही नमक इतना तेज था कि खाया न गया। मसाले में कचाँधा आ रही थी।'
'मैं जब सालन बना रहा था, तब आप यहाँ कब थीं?'
'अच्छा, तो मैं जब यहाँ बैठी रहूँ तब तुम्हारा सालन बढ़िया पकेगा?'
'आप बैठी रहती हैं, तब मेरी अक्ल ठिकाने रहती है।'
आशा को जुगल की इन भोली बातों पर खूब हँसी आ रही थी। हँसी को रोकना चाहती थी, पर वह इस तरह निकली पड़ती थी जैसे भरी बोतल उँड़ेल दी गयी हो।
'और मैं नहीं रहती तब?'
'तब तो आपके कमरे के द्वार पर जा बैठता हूँ। वहाँ बैठकर अपनी तकदीर को रोता हूँ।'
आशा ने हँसी को रोककर पूछा, क्यों, रोते क्यों हो?
'यह न पूछिए बहूजी, आप इन बातों को नहीं समझेंगी।'
आशा ने उसके मुँह की ओर प्रश्न की आँखों से देखा। उसका आशय कुछ तो समझ गयी, पर न समझने का बहाना किया।
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