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प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9777
आईएसबीएन :9781613015148

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सोलहवाँ भाग


गोपीनाथ- यहाँ क्या खा लूँ! एक वक्त ना खाऊँगा, तो ऐसी कौन-सी हानि हो जाएगी?

आनंदी- जब भोजन तैयार है, तो उपवास क्यों कीजिएगा?

गोपीनाथ- आप जायँ, आपको अवश्य देर हो रही है। मैं काम में ऐसा भूला कि आपकी सुधि ही न रही।

आनंदी- मैं भी एक जून उपवास कर लूँगी, तो क्या हानि होगी?

गोपीनाथ- नहीं-नहीं इसकी क्या जरूरत? मैं आपसे सच कहता हूँ, मैं  बहुधा एक जून ही खाता हूँ।

आनंदी- अच्छा, मैं आपके इनकार का आशय समझ गई। इतनी मोटी बात अब तक मुझे न सूझी।

गोपीनाथ- क्या समझ गईं? मैं छूत-छात नहीं मानता। यह तो आपको मालूम ही है।

आनंदी- इतना जानती हूँ। किंतु जिस कारण आप मेरे यहाँ भोजन करने से इनकार कर रहे हैं, उसके विषय में केवल इतना निवेदन है कि मेरा आपसे केवल स्वामी-सेवक का सम्बन्ध नहीं हैं। आपका मेरा पान-फूल को अस्वीकार करना अपने एक सच्चे भक्त के मर्म को आघात पहुँचाता है। मैं आपको इसी दृष्टि से देखती हूँ।

गोपीनाथ को अब कोई आपत्ति न हो सकी। जाकर भोजन कर लिया। वह जब तक आसन पर बैठे रहे आनंदी बैठी  पंखा झलती रही।

इस घटना की लाला गोपीनाथ के मित्रों ने यों आलोचना की- महाशयजी अब तो वहीं (‘वहीं' पर खूब जोर देकर) भोजन भी करते हैं।

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