लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16

प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9777
आईएसबीएन :9781613015148

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

171 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सोलहवाँ भाग


अमरनाथ- ऐसी भूल न करना। तुम अभी नवयुवक हो, तुम्हें संसार का कुछ अनुभव नहीं। मैंने ऐसी कितनी मिसालें देखी हैं, जहाँ अविवाहित रहने से लाभ के बदले हानि ही हुई है। विवाह मनुष्य को सुमार्ग पर रखने का सबसे उत्तम साधन है, जो अब तक मनुष्य ने आविष्कृत किया है। उस व्रत से क्या फायदा, जिसका परिणाम छिछोरापन हो?

गोपीनाथ ने प्रत्युत्तर दिया- आपने मादक वस्तुओं के ठेके के विषय में क्या निश्चय किया?

अमरनाथ- अभी तक कुछ नहीं। जी हिचकता है। कुछ-न-कुछ बदनामी तो होगी ही।

गोपीनाथ- एक अध्यापक के लिए मैं इस पेशे को अपमान समझता हूँ।

अमरनाथ- कोई पेशा खराब नहीं, अगर ईमानदारी से किया जाए।

गोपीनाथ- यहाँ मेरा आपसे मतभेद है। कितने ऐसे व्यवसाय हैं, जिन्हें एक सुशिक्षित व्यक्ति कभी स्वीकार नहीं कर सकता। मादक वस्तुओं का ठेका उनमें से एक है।

गोपीनाथ ने आकर अपने पिता से कहा- मैं कदापि विवाह न करूँगा। आप लोग मुझे विवश न करें, वर्ना पछताइएगा।

अमरनाथ ने उसी दिन ठेके के लिए प्रर्थनापत्र भेज दिया और वह स्वीकृत भी  हो गया।

दो साल हो गए हैं। लाला गोपीनाथ ने एक कन्या-पाठशाला खोली है, और उसके प्रबंधक हैं। शिक्षा की विभिन्न पद्धतियों का उन्होंने खूब अध्ययन किया है और इस पाठशाला में आप उनका व्यवहार कर रहे हैं। शहर में यह पाठशाला बहुत ही सर्वप्रिय है। इसने बहुत अंशों में उस उदासीनता को दूर कर दिया है, जो माता-पिता को पुत्रियों की शिक्षा की ओर होती है। शहर के गणमान्य पुरुष अपनी लड़कियों को सहर्ष पढ़ने भेजते हैं। वहाँ भी शिक्षा-शैली कुछ ऐसी मनोरंजक है कि बालिकाएँ एक बार जाकर मानो मंत्र-मुग्ध हो जाती हैं। फिर उन्हें घर पर चैन नहीं मिलता। ऐसी व्यवस्था की गई है कि तीन-चार वर्षों में कन्याओं को गृहस्थी के मुख्य कामों से परिचय हो जाय। सबसे बड़ी बात यह है कि यहाँ धर्म-शिक्षा का भी समुचित प्रबंध किया गया है। अबकी साल से प्रबन्धक महोदय ने अंग्रेजी की कक्षाएँ भी खोल दी हैं। उन्होंने एक सुशिक्षित गुजराती महिला को बंबई से बुलाकर पाठशाला उनके हाथ में दे दी है। इन महिला का नाम है आनंदीबाई। विधवा हैं, हिन्दी भाषा से भली-भाँति परिचित नहीं, किन्तु गुजराती में कई पुस्तकें लिख चुकी हैं। कई कन्या पाठशालाओं में काम कर चुकी हैं। शिक्षा-सम्बन्धी विषयों  में अच्छी गति  है। उनके आने से पाठशाला में और भी रौनक आ गई है। कई  प्रतिष्ठित सज्जनों ने, जो अपनी बालिकाओं को मसूरी और नैनीताल भेजना चाहते थे। अब उन्हें यहीं भरती करा दिया है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book