लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16

प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9777
आईएसबीएन :9781613015148

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

171 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सोलहवाँ भाग


बूढ़ा- गरीब बाम्हन हूं भैया, साहब से भेंट होगी?

अरदली- साहब तुम जैसों से नहीं मिला करते।

बूढ़े ने लाठी पर अकड़ कर कहा- क्यों भाई, हम खड़े हैं या डाकू-चोर हैं कि हमारे मुंह में कुछ लगा हुआ है?

अरदली- भीख मांग कर मुकदमा लड़ने आये होंगे?

बूढ़ा- तो कोई पाप किया है? अगर घर बेचकर नहीं लड़ते तो कुछ बुरा करते हैं? यहां तो मुकदमा लड़ते-लड़ते उमर बीत गयी; लेकिन घर का पैसा नहीं खरचा। मियां की जूती मियां का सिर करते हैं। दस भलेमानसों से मांग कर एक को दे दिया। चलो छुट्टी हुई। गांव भर नाम से कांपता है। किसी ने जरा भी टिर-पिर की और मैंने अदालत में दावा दायर किया।

अरदली- किसी बड़े आदमी से पाला नहीं पड़ा अभी?

बूढ़ा- अजी, कितने ही बड़ों को बड़े घर भिजवा दिया, तुम हो किस फेर में। हाई-कोर्ट तक जाता हूं सीधा। कोई मेरे मुंह क्या आयेगा बेचारा! गांव से तो कौड़ी जाती नहीं, फिर डरें क्यों? जिसकी चीज पर दांत लगाये, अपना करके छोड़ा। सीधे न दिया तो अदालत में घसीट लाये और रगेद-रगेद कर मारा, अपना क्या बिगड़ता है? तो साहब से इत्तला करते हो कि मैं ही पुकारूं?

अरदली ने देखा; यह आदमी यों टलनेवाला नहीं तो जाकर साहब से उसकी इत्तला की। साहब ने हुलिया पूछा और खुश होकर कहा- फौरन बुला लो।

अरदली- हजूर, बिलकुल फटेहाल है।

साहब- गुदड़ी ही में लाल होते हैं। जाकर भेज दो।

मिस्टर सिन्हा अधेड़ आदमी थे, बहुत ही शांत, बहुत ही विचारशील। बातें बहुत कम करते थे। कठोरता और असभ्यता, जो शासन की अंग समझी जाती हैं, उनको छू भी नहीं गयी थीं। न्याय और दया के देवता मालूम होते थे। डील-डौल देवों का-सा था और रंग आबनूस का-सा। आराम-कुर्सी पर लेटे हुए पेचवान पी रहे थे। बूढ़े ने जाकर सलाम किया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book