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प्रेमचन्द की कहानियाँ 15

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :167
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9776
आईएसबीएन :9781613015131

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पन्द्रहवाँ भाग


लुईसा ने कृतज्ञता व्यक्त करने के तौर पर मेरा हाथ धीरे से दबाया और थैंक्स कहकर चली गई। अंधेरे के कारण बिल्कुल नजर न आया कि वह कहां गई और न पूछना ही उचित था। मैं वहीं खड़ा-खड़ा इस अचानक मुलाकात के पहलुओं को सोचता रहा। कमाण्डिंग अफसर की बेटी क्या एक मामूली सिपाही को और वह भी जो काला आदमी हो, कुत्ते से बदत्तर नहीं समझती? मगर वही औरत आज मेरे साथ भाई का रिश्ता कायम करके फूली नहीं समाती थी।

इसके बाद कई साल बीत गये। दुनिया में कितनी ही क्रान्तियां हो गईं। रूस की जारशाही मिट गई, जर्मन को कैसर दुनियां के स्टेज से हमेशा के लिए बिदा हो गया, प्रजातंत्र की एक शताब्दी में जितनी उन्नति हुई थी, उतनी इन थोड़े-से सालों में हो गई। मेरे जीवन में भी कितने ही परिर्वतन हुए। एक टांग युद्ध के देवता की भेंट हो गई, मामूली सिपाही से लेफ्टिनेंट हो गया। एक दिन फिर ऐसी चमक और गरज की रात थी। मैं क्वार्टर मैं बैठा हुआ कप्तान नाक्स और लेफ्टिनेंट डाक्टर चन्द्रसिंह से इसी घटना की चर्चा कर रहा था जो दस-बारह साल पहले हुई थी, सिर्फ लुईसा का नाम छिपा रखा था। कप्तान नाक्स को इस चर्चा में असाधारण आनन्द आ रहा था। वह बार-बार एक-एक बात पूछता और घटना क्रम मिलाने के लिए दुबारा पूछता था। जब मैंने आखिर में कहा कि उस दिन भी ऐसी ही अंधेरी रात थी, ऐसी ही मूसलाधार बारिश हो रही थी और यही वक्त था तो नाक्स अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया और बहुत उद्विग्न होकर बोला- क्या उस औरत का नाम लुईसा तो नहीं था?

मैंने आश्चर्य से कहा, ‘आपको उसका नाम कैसे मालूम हुआ? मैंने तो नहीं बतलाया’,

पर नाक्स की आंखों में आंसू भर आये। सिसकियां लेकर बोले- यह सब आपको अभी मालूम हो जाएगा। पहले यह बतलाइए कि आपका नाम श्रीनाथ सिंह है या चौधरी।

मैंने कहा- मेरा नाम श्रीनाथ सिंह है। अब लोग मुझे सिर्फ चौधरी कहते हैं। लेकिन उस वक्त चौधरी का नाम से मुझे कोई न जानता था। लोग श्रीनाथ कहते थे।

कप्तान नाक्स अपनी कुर्सी खींचकर मेरे पास आ गये और बोले- तब तो आप मेरे पुराने दोस्त निकले। मुझे अब तब नाम के बदल जाने से धोखा हो रहा था, वर्ना आपका नाम तो मुझे खूब याद है। हां, ऐसा याद है कि शायद मरते दम तक भी न भूलूं क्योंकि ये उसकी आखिरी वसीयत है। यह कहते-कहते नाक्स खामोश हो गये और आंखें बन्द करके सर मेज पर रख लिया।

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