लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 14

प्रेमचन्द की कहानियाँ 14

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :163
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9775
आईएसबीएन :9781613015124

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

111 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौदहवाँ भाग


फूल भी सुन्दर है और दीपक भी सुन्दर है। फूल में ठंडक और सुगंधि है, दीपक में प्रकाश और उद्दीपन। फूल पर भ्रमर उड़-उड़कर उसका रस लेता है, दीपक में पतंग जलकर राख हो जाता है। मेरे सामने कारचोबी मनसद पर जो सुन्दरी विराजमान थी, वह सौंदर्य की एक प्रकाशमय ज्वाला थी। फूल की पंखुड़ियाँ हो सकती हैं ज्वाला को विभक्त करना असम्भव है। उसके एक-एक अंग की प्रशंसा करना ज्वाला को काटना है। वह नख-शिख एक ज्वाला थी, वही दीपक, वही चमक वही लालिमा, वही प्रभा, कोई चित्रकार सौन्दर्य प्रतिमा का इससे इच्छा चित्र नहीं खींच सकता था। रमणी ने मेरी तरफ वात्सल्य दृष्टि से देखकर कहा– आपको सफर में कोई विशेष कष्ट तो नहीं हुआ?

मैंने सँभलकर उत्तर दिया– जी नहीं, कोई कष्ट नहीं हुआ।

रमणी– यह स्थान पसंद आया?

मैंने साहसपूर्ण उत्साह के साथ जवाब दिया– ऐसा सुन्दर स्थान पृथ्वी पर न होगा। हाँ गाइड-बुक देखने से विदित हुआ कि यहाँ का जलवायु जैसा सुखद प्रकट होता है, यथार्थ में वैसा नहीं, विषैले पशुओं की भी शिकायत है।

यह सुनते ही रमणी का मुख-सूर्य कांतिहीन हो गया। मैंने तो चर्चा इसलिए कर दी थी, जिससे प्रकट हो जाय कि यहाँ आने में मुझे भी कुछ त्याग करना पड़ा है, पर मुझे ऐसा मालूम हुआ कि इस चर्चा से उसे कोई विशेष दुःख हुआ। पर क्षण-भर में सूर्य-मंडल से बाहर निकल आया, बोली– यह स्थान अपनी रमणीयता के कारण बहुधा लोगों की आँखों में खटकता है। गुण का निरादर करनेवाले सभी जगह होते हैं और यदि जलवायु कुछ हानिकर हो भी, तो आप जैसे बलवान मनुष्य को इसकी क्या चिन्ता हो सकती है। रहे विषैले जीव-जंतु, वह अपने नेत्रों के सामने विचर रहे हैं। अगर मोर, हिरन और हंस विषैले जीव हैं, जो निस्संदेह यहाँ विषैले जीव बहुत हैं।

मुझे संशय हुआ कहीं मेरे कथन से उसका चित्त खिन्न न हो गया हो। गर्व से बोला–इन गाइड-बुकों पर विश्वास करना सर्वथा भूल है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book