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प्रेमचन्द की कहानियाँ 13

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9774
आईएसबीएन :9781613015117

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेरहवाँ भाग


'अगर आप इन शब्दों में कहना चाहते हैं, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं; मगर अधिकार की बागडोर जैसे राजनीति में, वैसे ही समाज-नीति में धनबल के हाथ रही है और रहेगी।'

'अगर दैवयोग से धानोपार्जन का काम स्त्री कर रही हो और पुरुष कोई काम न मिलने के कारण घर बैठा हो, तो स्त्री को अधिकार है कि अपना मनोरंजन जिस तरह चाहे करे?'

'मैं स्त्री को अधिकार नहीं दे सकता।'

'यह आपका अन्याय है।'

'बिलकुल नहीं। स्त्री पर प्रकृति ने ऐसे बन्धन लगा दिये हैं कि वह जितना भी चाहे, पुरुष की भाँति स्वच्छन्द नहीं रह सकती और न पशुबल में पुरुष का मुकाबला ही कर सकती है। हाँ, गृहिणी का पद त्याग कर या अप्राकृतिक जीवन का आश्रय लेकर, वह सबकुछ कर सकती है।'

'आप लोग उसे मजबूर कर रहे हैं कि अप्राकृतिक जीवन का आश्रय ले।'

'मैं ऐसे समय की कल्पना ही नहीं कर सकता, जब पुरुषों का आधिपत्य स्वीकार करनेवाला औरतों का अकाल पड़ जाय। कानून और सभ्यता मैं नहीं जानता। पुरुषों ने स्त्रियों पर हमेशा राज किया है और करेंगे।'

सहसा कावसजी ने पहलू बदला। इतनी थोड़ी-सी देर में ही वह अच्छे-खासे कूटनीति-चतुर हो गये थे। शापूरजी को प्रशंसा-सूचक आँखों से देखकर बोले तो हम और आप दोनों एक विचार के हैं। मैं आपकी परीक्षा ले रहा था। मैं भी स्त्री को गृहिणी, माता और स्वामिनी, सबकुछ मानने को तैयार हूँ, पर उसे स्वच्छन्द नहीं देख सकता। अगर कोई स्त्री स्वच्छन्द होना चाहती है तो उसके लिए मेरे घर में स्थान नहीं है। अभी मिसेज़ शापूर की बातें सुनकर मैं दंग रह गया। मुझे इसकी कल्पना भी न थी कि कोई नारी मन में इतने विद्रोहात्मक भावों को स्थान दे सकती है।

मि. शापूर की गर्दन की नसें तन गयीं; नथने फूल गये। कुर्सी से उठकर बोले अच्छा, 'तो अब शीरीं ने यह ढंग निकाला! मैं अभी उससे पूछता हूँ आपके सामने पूछता हूँ अभी फैसला कर डालूँगा। मुझे उसकी परवाह नहीं है। किसी की परवाह नहीं है। बेवफा औरत? जिसके हृदय में जरा भी संवेदना नहीं, जो मेरे जीवन में जरा-सा आनन्द भी नहीं सह सकती चाहती है, मैं उसके अंचल में बँध-बँध घूमूँ! शापूर से यह आशा रखती है? अभागिनी भूल जाती है कि आज मैं आँखों का इशारा कर दूं, तो एक सौ एक शीरियाँ मेरी उपासना करने लगें; जी हाँ, मेरे इशारों पर नाचें। मैंने इसके लिए जो कुछ किया, बहुत कम पुरुष किसी स्त्री के लिए करते हैं। मैंने ... मैंने ...'

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