लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 13

प्रेमचन्द की कहानियाँ 13

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9774
आईएसबीएन :9781613015117

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

303 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेरहवाँ भाग


उधर रानी बनारस पहुँची, परंतु वहाँ पहले ही से पुलिस और सेना का जाल बिछा हुआ था। नगर के नाके बंद थे। रानी का पता लगाने के पुरस्कार में एक बहुमूल्य पारितोषिक की सूचना दी गई थी।

बंदीगृह से निकलकर रानी को ज्ञान हो गया कि वह और दृढ़ कारागार में है। दुर्ग में प्रत्येक मनुष्य उसका आज्ञाकारी था। दुर्ग का स्वामी भी उसे सम्मान की दृष्टि से देखता था, किंतु आज स्वतंत्र होकर भी उसके ओठ बंद थे। उसे सभी स्थानों में शत्रु-ही-शत्रु देख पड़ते थे। पंखरहित पक्षी को पिंजरे के कोने ही में सुख है।

पुलिस के आफ़िसर प्रत्येक आने-जाने वाले को ध्यान से देखते थे, किंतु उस भिखारिनी की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता था, जो एक फटी हुई साड़ी पहने यात्रियों के पीछे-पीछे धीरे-धीरे सिर झुकाए गंगा की ओर से चली आ रही है। न वह चौंकती है, न हिचकती है, न घबराती है। इस भिखारनी की नसों में रानी का रक्त है।  

यहाँ से भिखारिनी ने अयोध्या की राह ली। वह दिन-भर विकट मार्गों से चलती और रात को किसी सुनसान स्थान पर लेट रहती थी। मुख पीला पड़ गया था। पैरों में छाले थे। फूल-सा बदन कुम्हला गया था।

वह प्राय: गाँवों में लाहौर की रानी के चर्चे सुनती। कभी-कभी पुलिस के आदमी भी उसे रानी की टोह में दत्तचित्त देख पड़ते। उन्हें देखते ही भिखारिनी के हृदय में सोई हुई रानी जाग उठती। वह आँखें उठाकर उन्हें घृणा की दृष्टि से देखती और शोक व क्रोध से उसकी आँखें जलने लगतीं। एक दिन अयोध्या के समीप पहुँचकर रानी एक वृक्ष के नीचे बैठी हुई थी। उसने कमर से कटार निकालकर सामने रख दी थी। वह सोच रही थी कि कहाँ जाऊँ? मेरी यात्रा का अंत कहाँ है? क्या इस संसार में अब मेरे लिए कहीं ठिकाना नहीं है?

वहीं से थोड़ी दूर पर एक आमों का बहुत बड़ा बाग था। उसमें बड़े-बड़े डेरे और तंबू गड़े हुए थे। कई एक संतरी चमकीली वर्दियाँ पहने टहल रहे थे और कई घोड़े बँधे हुए थे। रानी ने इस राजसी ठाटवाट को शोक की दृष्टि से देखा। एक बार वह भी कश्मीर गई थी। उसका पड़ाव इससे कहीं बढ़कर था।

बैठे-बैठे संध्या हो गई। रानी ने वहीं रात काटना निश्चय किया। इतने में एक बूढ़ा मनुष्य टहलता हुआ आया और उसके समीप खड़ा हो गया। ऐंठी हुई दाढ़ी थी, शरीर में सटा हुआ चपकन था, कमर में तलवार लटक रही थी। इस मनुष्य को देखते ही रानी ने तुरंत कटार उठाकर कमर में खोंस ली। सिपाही ने उसे तीव्र दृष्टि से देखकर पूछा- ''बेटी कहाआ से आती हो? ''

रानी ने कहा- ''बहुत दूर से।''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book