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प्रेमचन्द की कहानियाँ 9

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9770
आईएसबीएन :9781613015070

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का नौवाँ भाग


2 जनवरी

मैं हैरान हूं हेलेन को मुझसे इतनी हमदर्दी क्यों है और यह सिर्फ दोस्तना हमदर्दी नहीं है। इसमें मुहब्बत की सच्चाई है। दया में तो इतना आतिथ्य-सत्कार नहीं हुआ करता, और रही मेरे गुणों की स्वीकृति तो मैं अक्ल से इतना खाली नहीं हूं कि इस धोखे में पडूं। गुणों की स्वीकृति ज्यादा से ज्यादा एक सिगरेट और एक प्याली चाय पा सकती है। यह सेवा-सत्कार तो मैं वहीं पाता हूं जहां किसी मैच में खेलने के लिए मुझे बुलाया जाता है। तो भी वहां भी इतने हार्दिक ढंग से मेरा सत्कार नहीं होता, सिर्फ रस्मी खातिरदारी बरती जाती है। उसने जैसे मेरी सुविधा और मेरे आराम के लिए अपने को समर्पित कर दिया हो। मैं तो शायद अपनी प्रेमिका के सिवा और किसी के साथ इस हार्दिकता का बर्ताव न कर सकता। याद रहे, मैंने प्रेमिका कहा है पत्नी नहीं कहा। पत्नी की हम खातिरदारी नहीं करते, उससे तो खातिरदारी करवाना ही हमारा स्वभाव हो गया है और शायद सच्चाई भी यही है। मगर फिलहाल तो मैं इन दोनों नेमतों में से एक का भी हाल नहीं जानता। उसके नाश्ते, डिनर, लंच में तो मैं शरीक था ही, हर स्टेशन पर (वह डाक थी था और खास-खास स्टेशनों पर ही रुकती थी) मेवे और फल मंगवाती और मुझे आग्रहपूर्वक खिलाती। कहां की क्या चीज मशहूर है, इसका उसे खूब पता है।

मेरे दोस्तों और घरवालों के लिए तरह-तरह के तोहफे खरीदे मगर हैरत यह है कि मैंने एक बार भी उसे मना न किया। मना क्योंकर करता, मुझसे पूछकर तो लाती नहीं। जब वह एक चीज लाकर मुहब्बत के साथ मुझे भेंट करती है तो मैं कैसे इन्कार करूं!

खुदा जाने क्यों मैं मर्द होकर भी उसके सामने औरत की तरह शर्मीला, कम बोलनेवाला हो जाता हूं कि जैसे मेरे मुंह में जबान ही नहीं। दिन की थकान की वजह से रात-भर मुझे बेचैनी रही सर में हल्का-सा दर्द था मगर मैंने इस दर्द को बढ़ाकर कहा। अकेला होता तो शायद इस दर्द की जरा भी परवाह न करता मगर आज उसकी मौजूदगी में मुझे उस दर्द को जाहिर करने में मजा आ रहा था। वह मेरे सर में तेल की मालिश करने लगी और मैं खामखाह निढाल हुआ जाता था। मेरी बेचैनी के साथ उसकी परेशानी बढ़ती जाती थी। मुझसे बार-बार पूछती, अब दर्द कैसा है और मैं अनमने ढंग से कहता- अच्छा हूं। उसकी नाजुक हथेलियों के स्पर्श से मेरे प्राणों में गुदगुदी होती थी। उसका वह आकर्षक चेहरा मेरे सर पर झुका है, उसकी गर्म सांसे मेरे माथे को चूम रही है और मैं गोया जन्नत के मजे ले रहा हूं। मेरे दिल में अब उस पर फतेह पाने की ख्वाहिश झकोले ले रही है। मैं चाहता हूं वह मेरे नाज उठाये। मेरी तरफ से कोई ऐसी पहलन न होनी चाहिए जिससे वह समझ जाये कि मैं उस पर लट्टू हो गया हूं।

चौबीस घंटे के अन्दर मेरी मन:स्थिति में कैसे यह क्रांति हो जाती है, मैं क्योंकर प्रेम के प्रार्थी से प्रेम का पात्र बन जाता हूं। वह बदस्तूर उसी तल्लीनता से मेरे सिर पर हाथ रक्खे बैठी हुई है। तब मुझे उस पर रहम आ जाता है और मैं भी उस एहसास से बरी नहीं हूं मगर इस माशूकी में आज जो लुत्फ आया उस पर आशिकी निछावर है। मुहब्बत करना गुलामी है, मुहब्बत किया जाना बादशाहत। मैंने दया दिखलाते हुए कहा- आपको मेरी वजह से बड़ी तकलीफ हुई।

उसने उमगकर कहा- मुझे क्या तकलीफ हुई। आप दर्द से बेचैन थे और मैं बैठी थी। काश, यह दर्द मुझे हो जाता! मैं सातवें आसमान पर उड़ जा रहा था।

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