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प्रेमचन्द की कहानियाँ 6

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9767
आईएसबीएन :9781613015049

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छटा भाग


शिवनाथ जिस गाँव का वाशिदा था, उसके एक नंबरदार साहब का नाम लाल सिंह था। लाल सिंह बदमाश, आवारा-मिज़ाज आदमी था। गाँव की हयादार औरतें निडरता से कहतीं कि किसी तरह उसकी दोनों आँखें बैठ जाएँ। न आँखें रहेंगी, न यह दूसरों की बहू-बेटियों पर बुरी निगाह डालेगा। एक रोज़ घूमता हुआ शिवनाथ के दरवाजे की तरफ़ आ निकला और अपना प्रेम-पाश फैला गया। शिवनाथ तो उधर थाने चला गया और मोहब्बत की घातें यहाँ अपना काम करती रहतीं। आखिर गरीब खँगारन लाल सिंह के जाल में फँस गई।

कुछ दिनों तक यह राज छिपा रहा, मगर गुनाह छिपाने से कब छिपता है? गाँव में कानाफूसी होने लगी। शिवनाथ को भी खबर हुई। बीवी का मिज़ाज कुछ दिनों से बदला हुआ देखकर उलझन में पड़ा हुआ था। कुछ शुबहा हुआ। लालसिंह से जाकर बोला- ''ठाकुर साहब, मैं गरीब आदमी हूँ। मेरी इज़्ज़त प्रतिष्ठा सब आपके हाथ में है। मुझे और आपको गाँव वाले बदनाम कर रहे हैं। ऐसा कुछ कीजिए कि मैं भी गाँव में बसा रहूँ और तुम्हारी भी बदनामी न हो।

मगर लाल सिंह नशे-ताक़त में भूला हुआ था। शिवनाथ को डाँट-डपट बताई और धक्के देकर निकलवा दिया। शिवनाथ को गुस्सा तो आया, मगर जप्त कर गया, और जाकर अपने थानेदार साहब से सारी क़ैफ़ियत बयान की। थानेदार ने लालसिंह को थाने में बुलाया, मगर शाम को लोगों ने उसे मूँछों पर ताव देते हुए लौटते देखा। बेदाग़ छूट आया। सौ-पचास रुपयों ने मुश्किल आसान कर दी। ग़रीब शिवनाथ को इस दरबार से निराश होना पड़ा। आखिर उसके दिल ने वह फ़ैसला किया जो ऐसी हालतों में अक्सर आखिरी फ़ैसला होता है।

कछ दिन और गुज़रे। शिवनाथ अपने घर में बेगानों की तरह आता और मेहमान की तरह रहता। वह घर अब उसका घर न था और न वह औरत उसकी बीवी थी। वह घर अब लालसिंह का था और वह औरत अब लालसिंह की बीवी थी। एक दिन शिवनाथ ने अपनी बीवी से कहा- ''मैं एक सरकारी काम से मौदहा जाता हूँ चार-पाँच दिन लगेंगे, खूब होशियारी से रहना।'' गँवार औरत तिरिया-चरित न पढ़ी थी। यह खबर सुनते ही बारा-बारा हो गई। लबों पर मुस्कराहट आ गयी। यह मुस्कराहट शिवनाथ के कलेजे में बर्छी की तरह उतर गई। जब वह आटा-दाल बाँधकर घर से निकला तो लालसिंह के भाग जागे। जामे में फूले न समाए। सोचा कि अब चार-पाँच दिन चैन-ही-चैन है।

आधी रात का वक्त था। शिवनाथ ढाक के जंगल में छिपा हुआ था। उसने अपनी गँड़ास खूब तेज कर रखी थी। जब सारस के नालों ने दूसरा पहर बजाया तो वह कटार हाथ में लेकर अपने घर की तरफ़ चला। वहाँ जाकर देखा तो दरवाजा बंद था। बंदर की तरह लपककर छप्पर पर चढ़ गया और आँगन में कूद पड़ा। अंदर जाकर देखा तो ठाकुर साहब और उनकी प्रेमिका दोनों स्वप्नलीन हैं। कौन इस नजारे की ताब ला सकता है? ललकार कर बोला - ''लाल सिंह, खबरदार हो जाओ, अब तुम्हारा काल आ पहुँचा है।''

लालसिंह हकबकाकर उठा ही था कि कटार का भरपूर हाथ गर्दन पर पड़ा और सिर अलग जा गिरा। खँगारिन शिवनाथ के पैरों पर गिर पड़ी। शिवनाथ ने उससे सिर्फ़ इतना कहा- ''शर्म हो तो चुल्लू भर पानी में डूब मर!'' मगर उस पर हाथ नहीं उठाया।

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